tag:blogger.com,1999:blog-88852944871159941762024-03-08T03:33:40.360-08:00सदगुरू कबीर साहेब Sadguru Kabeer Sahibयह ब्लाग सन्त शिरोमणी कबीर साहब की वाणियों, उनसे सम्बन्धित चरित्रों, और सन्तमत के अन्य लेखों के प्रकाशन हेतु है। कालमाया के जाल को समझने, बचने, और निकलने हेतु कबीर साहिब की वाणियों का गहन अध्ययन करना ही एकमात्र उपाय है।
बङे भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सदग्रन्थन गावा।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाय न जेहि परलोक सँवारा।
सम्पर्क - 82188 43911mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.comBlogger220125tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-15046402941009793432018-07-15T04:49:00.001-07:002018-07-15T04:49:55.884-07:00आदिरमैनी
आदिरमैनी (गरीबदास)
आदिरमैनी अदली सारा, जा दिन होते धुंधकारा।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा, हम होते तखत कबीर खवासा।
मनमोहिनी सिरजी माया, सतपुरुष एक ख्याल बनाया।
धर्मराय सिरजे दरबानी, चौसठ जुग तप सेवा ठानी।
पुरुष प्रथ्वी जाकू दीनी, राज करो देवा आधीनी।
इकीस ब्रह्माण्ड राज तुम दीन्हा, मन की इच्छा सब जुग
लीन्हा।
मायामूल रूप एक छाजा, मोहि लिये जिनहू
धर्मराजा।
धर्म का मन चंचलचित धारा, मन mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-56043727422237198522018-07-14T21:28:00.003-07:002018-07-14T21:28:36.754-07:00अनुराग सागर की कहानी
अनुराग सागर कबीर साहिब और धर्मदास के संवादों पर आधारित महान ग्रन्थ है। इसकी शुरूआत में बताया गया है कि सबसे पहले जब ये सृष्टि नहीं थी। प्रथ्वी, आसमान, सूरज, तारे आदि कुछ भी नहीं था तब केवल परमात्मा ही था।
सिर्फ़ परमात्मा ही शाश्वत है। इसलिये संतमत में और सच्चे जानकार संत परमात्मा के लिये “है” शब्द का प्रयोग करते हैं। उस (परमात्मा) ने कुछ सोचा। (सृष्टि की शुरूआत में उसमें स्वतः एक विचार mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-38973188971511570802018-07-13T03:29:00.003-07:002018-07-13T03:29:41.394-07:00विदेहस्वरूप सारशब्द
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, मोक्ष प्रदान
करने वाला सारशब्द विदेहस्वरूप वाला है और उसका वह अनुपम रूप निःअक्षर है । पाँच तत्व
और पच्चीस प्रकृति को मिलाकर सभी शरीर बने हैं परन्तु सारशब्द इन सबसे भी परे
विदेहस्वरूप वाला है ।
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<!--[endif]-->
कहने
सुनने के लिये तो भक्त संतों के पास वैसे लोकवेद आदि के कर्मकांड, उपासना कांड, ज्ञानकांड, योग,
मंत्र आदि से सम्बन्धित सभीmukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-90093035220169955812018-07-13T03:28:00.000-07:002018-07-13T03:28:28.798-07:00आत्मस्वरूप परमात्मा का वास्तविक नाम ‘विदेह’ है
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, जब तक देह से
परे, विदेह नाम का ध्यान होने में नहीं आता, तब तक जीव इस असार संसार में ही भटकता रहता है । विदेह ध्यान और विदेह
नाम इन दोनों को अच्छी तरह से समझ लेता है तो उसके सभी संदेह मिट जाते हैं ।
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<!--[endif]-->
जब लग
ध्यान विदेह न आवे, तब लग जिव भव भटका खावे।
ध्यान विदेह और नाम विदेहा, दोउ लखि पावे मिटे
संदेहा।
<!--[if !mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-12861655107540647652018-07-13T03:27:00.001-07:002018-07-13T03:27:12.504-07:00लुटेरा कामदेव
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, साधना करते समय
सबसे पहले साधु को चक्षु (आँख) इन्द्रिय
को साधना चाहिये, यानी आँखों पर नियंत्रण रखे । वह किसी विषय
पर इधर उधर न भटके । उसे भली प्रकार नियंत्रण में करे, और
गुरू के बताये ज्ञानमार्ग पर चलता हुआ सदैव उनके द्वारा दिया हुआ नाम भाव पूर्ण
होकर सुमरन करे ।
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<!--[endif]-->
पाँच तत्वों
से बने इस शरीर में ज्ञान इन्द्रिय आँख का mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-31520993960939445782018-07-13T03:26:00.001-07:002018-07-13T03:26:20.745-07:00साधु का मार्ग बहुत कठिन है
कबीर
साहब बोले - इस मनुष्य को कौवे की चाल, स्वभाव (जो साधारण मनुष्य की होती है) आदि दुर्गुणों को त्यागकर हंस स्वभाव को अपनाना चाहिये । सदगुरू के शब्द
उपदेश को ग्रहण कर मन, वचन, वाणी,
कर्म से सदाचार आदि सदगुणों से हंस के समान होना चाहिये ।
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धर्मदास, जीवित रहते हुये यह मृतक स्वभाव का अनुपम ज्ञान तुम ध्यान से सुनो । इसे
ग्रहण करके ही कोई बिरला mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-4848405083247799912018-07-13T03:25:00.003-07:002018-07-13T03:25:42.559-07:00धर्मदास यह कठिन कहानी
कबीर
साहब बोले - सत्यज्ञान बल से सदगुरू काल पर विजय प्राप्त
कर अपनी शरण में आये हुये हंसजीव को सत्यलोक ले जाते हैं । जहाँ पर हंसजीव मनुष्य
सत्यपुरुष के दर्शन पाता है, और अति आनन्द को प्राप्त करता
है । फ़िर वह वहाँ से लौटकर कभी भी इस कष्टदायक दुखदायी संसार में वापस नहीं आता, यानी उसका मोक्ष हो जाता है ।
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धर्मदास, मेरे वचन उपदेश को भली प्रकार mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-62092470735292201202018-07-13T03:25:00.001-07:002018-07-13T03:25:01.431-07:00अनल-पक्षी का रहस्य
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, गुरू की महान
कृपा से मनुष्य साधु कहलाता है । संसार से विरक्त मनुष्य के लिये गुरूकृपा से बढ़कर
कुछ भी नहीं है । फ़िर ऐसा साधु अनल पक्षी के समान होकर सत्यलोक को जाता है ।
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धर्मदास, तुम इस अनल-पक्षी के रहस्य उपदेश को सुनो । अनल पक्षी निरन्तर आकाश में
ही विचरण करता रहता है, और उसका अण्डे से उत्पन्न बच्चा भी
स्वतः जन्म mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-82869168844360749462018-07-13T03:24:00.001-07:002018-07-13T03:24:24.103-07:00परमार्थ के उपदेश
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, अब मैं तुमसे
परमार्थ वर्णन करता हूँ । ज्ञान को प्राप्त हुआ, ज्ञान के
शरणागति हुआ कोई जीव समस्त अज्ञान और काल-जाल को छोङे । तथा लगन लगाकर सत्यनाम का
सुमरन करे । असत्य को छोङकर सत्य की चाल चले, और मन लगाकर
परमार्थ मार्ग को अपनाये ।
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धर्मदास, एक गाय को परमार्थ गुणों की खान जानो । गाय की चाल और गुणों को समझो । गाय
खेत, mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-68396225243198224032018-07-13T03:23:00.001-07:002018-07-13T03:23:43.864-07:00काल वास्तव में क्या है
कबीर
साहब बोले - ऐसे जो कल्याण मोक्ष चाहने वाले सच्चे अनुरागी
हैं । वह प्रभु के सत्यनाम ज्ञान से सच्ची लगन लगाये, और
भक्ति-भाव में कुल परिवार सभी को भुला दे । पुत्र और स्त्री आदि का मोह मन में कभी
न आने दे, और जन्म से लेकर मृत्यु तक सम्पूर्ण जीवन को स्वपन
के समान समझे ।
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धर्मदास, इस संसार में जीवन बहुत थोङा है, और अंत में मृत्यु
समय कोई mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-42094573917030047902018-07-13T03:22:00.001-07:002018-07-13T03:22:19.499-07:00अनुरागी के लक्षण
कबीर
साहब बोले - जो शब्द की जाँच करता है, और गुणों को भलीभांति परखता है । ऐसा ही कोई
श्रद्धा रखने वाला जिज्ञासु ही सत्यज्ञान को पायेगा । सदगुरू के सद-उपदेश को सच्चे
ज्ञान का अधिकारी मन लगाकर ध्यानपूर्वक सुनता है । जब चमकते हुये सूर्य के समान
सदगुरू का सत्यज्ञान ह्रदय में प्रकाशित होता है, तब मोह
माया रूपी अँधकार नष्ट होकर सब कुछ अपने वास्तविक रूप में दिखाई देने लगता है, और सब भ्रम मिट mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-42126026875751275612018-07-13T03:21:00.003-07:002018-07-13T03:21:45.702-07:00कपटी काल-निरंजन का चरित्र
कबीर
बोले - धर्मदास, अब इस कपटी
काल-निरंजन का चरित्र सुनो, किस प्रकार वह जीवों की छल
बुद्धि कर अपने जाल में फ़ँसाता है । इसने कृष्ण अवतार धर कर गीता की कथा कही ।
परन्तु अज्ञानी जीव इसके चाल रहस्य को नहीं समझ पाता । अर्जुन श्रीकृष्ण का सच्चा
सेवक था, और श्रीकृष्ण की भक्ति में लगन लगाये रहता था ।
श्रीकृष्ण
ने उसे सब सूक्ष्म ज्ञान कहा । सांसारिक विषयों से लगाव और सांसारिक विषयों से परे
आत्म, mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-83159965103435661922018-07-13T03:21:00.001-07:002018-07-13T03:21:03.063-07:00मन की कपट करामात
कबीर
बोले - धर्मदास, जिस प्रकार कोई
नट बंदर को नाच नचाता है, और उसे बंधन में रखता हुआ अनेक दुख
देता है । इसी प्रकार ये मनरूपी काल-निरंजन जीव को नचाता है,
और उसे बहुत दुख देता है । यह मन जीव को भ्रमित कर पापकर्मों में प्रव्रत करता है
तथा सांसारिक बंधन में मजबूती से बाँधता है । मुक्ति उपदेश की तरफ़ जाते हुये किसी
जीव को देखकर मन उसे रोक देता है ।
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<!--[endif]-mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-66130199745431161862018-07-13T03:20:00.001-07:002018-07-13T03:20:19.428-07:00कौआ और कोयल से भी सीखो
कबीर
बोले - धर्मदास, कोयल के बच्चे
का स्वभाव सुनो, और उसके गुणों को जानकर विचार करो । कोयल मन
से चतुर तथा मीठी वाणी बोलने वाली होती है जबकि उसका वैरी कौवा पाप की खान होता है
।
कोयल
कौवे के घर (घोंसले) में अपना अण्डा
रख देती है । विपरीत गुण वाले दुष्ट मित्र कौवे के प्रति कोयल ने अपना मन एक समान
किया । तब सखा मित्र सहायक समझ कर कौवे ने उस अण्डे को पाला और वह काल-बुद्धि कागा (कौवा) उस अण्डे
कीmukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-18533280521467231822018-07-13T03:19:00.001-07:002018-07-13T03:19:37.196-07:00शरीर ज्ञान परिचय
धर्मदास
बोले - साहिब, मैं बङभागी हूँ, जो आपने मुझे ज्ञान दिया । अब आप मुझे शरीर का निर्णय विचार भी कहिये, इसमें कौन सा देवता कहाँ रहता है और उसका क्या कार्य है? नाङी रोम कितने हैं, और शरीर में खून किसलिये है, तथा स्वांस कौन से मार्ग से चलती है?
आँते, पित्त, फ़ेफ़ङा, और आमाशय इनके
बारे में भी बताओ । शरीर में स्थिति कौन से कमल पर कितना जप होता है, और रात दिन में कितनी स्वांस चलती है । कहाँ सेmukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-75524240513036718352018-07-13T03:18:00.003-07:002018-07-13T03:18:54.701-07:00गुरू शिष्य, विचार-रहनी
धर्मदास
बोले - साहिब, आप गुरू हो,
मैं आपका दास हूँ । अब आप मुझे गुरू और शिष्य की रहनी समझा कर कहो ।
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कबीर
बोले - गुरू का व्रत धारण करने वाले शिष्य को समझना
चाहिये कि निर्गुण और सगुण के बीच गुरू ही आधार होता है । गुरू के बिना आचार,
अन्दर बाहर की पवित्रता नहीं होती, और गुरू के
बिना कोई भवसागर से पार नहीं होता ।
शिष्य
को सीप के समान, और गुरू mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-24429756388800339582018-07-13T03:18:00.001-07:002018-07-13T03:18:09.433-07:00सात, पाँच के मायाजाल में फ़ँसा जीव
कबीर
बोले - धर्मदास, सदगुरू
सर्वोपरि हैं अतः शिष्य को चाहिये कि गुरू से अधिक किसी को न माने, और गुरू के सिखाये हुये को सत्य करके जाने । एक समय ऐसा भी आयेगा,
जब तुम्हारा बिंद वंश उल्टा काम करेगा । वह बिना गुरू के भवसागर से
पार होना चाहेगा ।
जो
निगुरा होकर जगत को समझाता है अर्थात ज्ञान बताता है । वह खुद तो डूबेगा ही तथा
संसार के जीवों को भी डुबायेगा, बिना गुरू के कल्याण
नहीं होता । जो गुरू केmukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-77557787661338552582018-07-13T03:17:00.002-07:002018-07-13T03:17:24.112-07:00चूङामणि का जन्म
धर्मदास
बोले - प्रभु अब आप मुझ पर कृपा करो । जिससे संसार
में वचन वंश प्रकट हो, और आगे पंथ चले ।
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कबीर
बोले - धर्मदास, दस महीने में
तुम्हारे जीव रूप में वंश प्रकट होगा, और अवतारी होकर जीवों
के उद्धार के लिये ही संसार में आयेगा । ये तुम्हारा पुत्र ही मेरा अंश होगा ।
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धर्मदास
ने कहा - साहिब, mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-41573497341551733212018-07-13T03:16:00.001-07:002018-07-13T03:16:24.778-07:00कालदूत नारायण दास की कहानी
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, मैंने तुम्हारे
सामने सत्य का भेद प्रकाशित किया है, और तुम्हारे सभी काल-जाल को मिटा दिया है । अब रहनी, गहनी की बात सुनो, जिसको जाने बिना मनुष्य यूँ ही भूलकर सदा भटकता रहता है । सदा मन लगाकर
भक्ति साधना करो, और मान प्रशंसा को त्यागकर सच्चे सन्तों की
सेवा करो ।
पहले
जाति, वर्ण और कुल की मर्यादा नष्ट करो । (अभिमान मत करो और ये मत मानों कि ‘मैं’ ये हूँ या वो हूँ । ये mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-26686876241491664372018-07-13T03:15:00.002-07:002018-07-13T03:15:38.680-07:00धर्मदास के पूर्वजन्म की कहानी
धर्मदास
बोला - साहिब, आपके द्वारा
जगन्नाथ मंदिर का बनवाना मैंने सुना । इसके बाद आप कहाँ गये,
कौन से जीव को मुक्त कराया तथा कलियुग का प्रभाव भी कहिये ।
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<!--[endif]-->
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, ‘राजस्थल
देश’ के राजा का नाम ‘बंकेज’ था ।
मैंने
उसे नाम उपदेश दिया, और जीवों के उद्धार के लिये कर्णधार केवट
बनाया ।
राजस्थल
देश से मैं शाल्मलि दीप आया, और वहाँmukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-46352381076910096802018-07-13T03:14:00.001-07:002018-07-13T03:14:32.718-07:00समुद्र और राम की दुश्मनी का कबीर द्वारा निबटारा
धर्मदास
बोले - साहिब, इससे आगे क्या
हुआ, वह सब भी मुझे सुनाओ ।
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कबीर
साहब बोले - उस समय राजा इन्द्रदमन उङीसा का राजा था । राजा
इन्द्रदमन अपने राज्य का कार्य न्यायपूर्ण तरीके से करता था । द्वापर युग के अन्त
में श्रीकृष्ण ने प्रभास क्षेत्र में शरीर त्यागा तब उसके बाद राजा इन्द्रदमन को
स्वपन हुआ । स्वपन में श्रीकृष्ण ने उससे कहा तुम मेरा मंदिर mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-40483403789178717402018-07-13T03:13:00.001-07:002018-07-13T03:13:35.179-07:00काल कसाई, जीव बकरा
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, द्वापर युग बीत
गया और कलियुग आया । तब मैं फ़िर सत्यपुरुष की आज्ञा से जीवों को चेताने हेतु
प्रथ्वी पर आया, और मैंने काल-निरंजन
को अपनी ओर आते देखा ।
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मुझे
देखकर वह भय से मुरझा ही गया, और बोला - किसलिये मुझे दुखी करते हो, और मेरे भक्ष्य भोजन
जीवों को सत्यलोक पहुँचाते हो । तीनों युग त्रेता,
द्वापर, सतयुग में mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-83715037508093998812018-07-13T03:12:00.001-07:002018-07-13T03:12:44.708-07:00कबीर का सुदर्शन श्वपच को ज्ञान देना
कबीर साहब
बोले - धर्मदास, रानी इन्द्रमती
के हंसजीव को सत्यलोक पहुँचा कर, उसे सत्यपुरुष के दर्शन
कराने के बाद मैंने कहा - हे हंस, अब
अपनी बात बताओ तुम्हारी जैसी दशा है, सो कहो । तुम्हारा सब दुख, द्वंद, जन्म, मरण का आवागमन सब मिट गया, और तुम्हारा तेज सोलह सूर्य के बराबर हो गया, और
तुम्हारे सब कलेश मिटकर तुम्हारा कल्याण हुआ ।
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इन्द्रमती
mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-12636405013832148662018-07-13T03:11:00.001-07:002018-07-13T03:11:53.784-07:00रानी इन्द्रमती का सत्यलोक जाना
कबीर
साहब बोले - धर्मदास, तब यह सब रानी
ने मेरे पास आकर कहा, और मैंने उसे विघ्न डालकर बुद्धि
फ़ेरने वाले काल-निरंजन का चरित्र सुनाया । उसने राजा की बुद्धि किस तरह फ़ेर दी, और इसके बाद मैंने रानी को भविष्य के बारे में बताया ।
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मैंने
रानी से कहा - रानी सुनो, काल-निरंजन
अपनी कला से छल का रूप धारण करेगा । साँप बनकर कालदूत तुम्हारे पास आयेगा, और mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8885294487115994176.post-73200306408910978312018-07-13T03:10:00.001-07:002018-07-13T03:10:59.788-07:00कबीर और रानी इन्द्रमती
त्रेता-युग
समाप्त हुआ और द्वापर-युग आ गया ।
तब
फ़िर काल-निरंजन का प्रभाव हुआ, और फ़िर सत्यपुरुष ने
ज्ञानीजी को बुलाकर कहा - ज्ञानी, तुम
शीघ्र संसार में जाओ, और काल-निरंजन के बँधनों से जीवों का
उद्धार करो । काल-निरंजन जीवों को बहुत पीङा दे रहा है, जाकर
उसकी फ़ाँस काटो ।
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तब
मैंने सत्यपुरुष की बात सुनकर उनसे कहा - आप
प्रमाणित स्पष्ट शब्दों mukta mandlahttp://www.blogger.com/profile/15157348406429932150noreply@blogger.com0