लोग भरोसे कवन के बैठ रहे अरगाए ।
ऐसे जियरा जम लुटै जस मेंडहि लुटै कमाए ।
समुझि बूझि जड हो रहै बल तजि निर्बल होए ।
कहैं कबीर ता संग को पला न पकडे कोए ।
हीरा सोइ सराहियो । सहै घनन की चोट ।
कपट कुरंगी मानवा । परषत निकरा षोट ।
हरि हीरा जन जौहरी । सबन पसारी हाट ।
जब आवे मन जौहरी । तब हीरों की साट ।
हीरा तहाँ न षोलिये । जहँ कुँजरों की हाट ।
सहजहिं गांठी बांधिये । लगिये अपनी बाट ।
हीरा परा बजार में । रहा छार लपटाय ।
बहुतक मूरष पचि मुये । कोइ पारषी लिया उठाय ।
हीरा की ओवरि नहीं । मलयागिर नहिं पांत ।
सिंहों के लेहँडा नहीं । साधु न चलैं जमात ।
अपने अपने सिरों का । सबन कीन्ह है मान ।
हरि की बात दुरंतरी । परी न काहू जान ।
हाड जरै जस लाकडी । बार जरै जस घास ।
कबिरा जरै राम रस । जस काठि न जरै कपास ।
घाट भुलान बाट बिनु । भेस भुलाना कान ।
जाको माडी जगत में । सो न परा पहिचान ।
मूरष से क्या बोलिये । सठ से कहा बसाय ।
पाहन में क्यों मारिये । चोषा तीर नसाए ।
जैसी गोली गुमज की । नीच परे ढहराय ।
तैसे हृदया मूर्ष का । सब्द नहीं ठहराय ।
ऊपर की दोऊ गई । हियहु की गई हेराए ।
कहैं कबीर जाकी चारों गई । ताको कौन उपाए ?
केते दिन ऐसे गया । अनरूचे का नेह ।
ऊसर बोय न ऊपजै । जो घन बरसै मेह ।
मैं रोवों यह जगत को । मोको रोवै न कोए ।
मोको रोवै सो जना । जो सब्द विवेकी होए ।
साहेब साहेब सब कहैं । मोहि अंदेसा और ।
साहेब से परिचय नहीं । बैठेंगे केहि ठौर ।
जीव बिना जीव ना जीय । जीव का जीव आधार ।
जीव दया करि पालिये पंडित करहु बिचार ।
हम तो सबही की कही । मोको कोइ न जान ।
तब भी अच्छा अब भी अच्छा । जुगजुग होउँ न आन ।
प्रगट कहौं तो मारिया । परदे लषै न कोय ।
सुनहा छिपा पयार तर । को कहि बैरी होए ।
देस विदेसै हौं फिरा । मनही भरा सुकाल ।
जाको ढूँढत हौं फिरा । ताको परा दुकाल ।
कलि षोटा जग आंधरा । सब्द न मानै कोय ।
जाहि कहौं हित आपना । सो उठि बैरी होय ।
मसि कागद छूवों नहीं । कलम गहों नहिं हाथ ।
चारिउ जुग के महात्मा । कबीर मुष ही जनाई बात ।
फहम आगे फहम पाछे । फहम दहिने डेरी ।
फहम पर जो फहम करै । सो फहम है मेरी ।
हद चले सों मानवा । बेहद चलै सो साध ।
हद बेहद दोऊ तजै । ताकर मता अगाध ।
समुझे की गति एक है । जिन समझा सब ठौर ।
कहैं कबीर ये बीच के । बलकहिं औरहि और ।
राह बिचारी क्या करै । पंथि न चलै बिचार ।
अपना मारग छोड के । फिरै उजार उजार ।
मूवा है मरि जाहुगे । मुये की बाजी ढोल ।
स्वप्न सनेही जग भया । सहिदानी रहिगौ बोल ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें