मुवा है मरि जाहुगे । बिन सिर थोथे भाल ।
परेहु करायल बृक्षतर । आज मरहु की काल ।
बोल हमारा पूर्व का । हम को लषै न कोए ।
हम को तो सोई लषै । जो धूर्त पूरब का होय ।
जा चलते रौदे परा । धरती होय बेहाल ।
सो सावत घामे जरे । पंडित करो बिचार ।
पाहन पुहुमी नापते । दरिया करते फाल ।
हाँथन पर्वत तौलते । तेहि धरि षायो काल ।
नव मन दूध बटोरि के । टिपके किया विनास ।
दूध फाटि काँजी भया । भया घृत्त का नास ।
केतना मनावों पाँव परि । कितनो मनावों रोए ।
हिंदू पूजै देवता । तुरुक न काहू होए ।
मानुस तेरा गुन बडा । मासु न आवैं काज ।
हाड न होते आभरन । त्वचा न बाजन बाज ।
जो मोहिं जानै ताहि मैं जानो । लोक बेद का कहा न मानो ।
सबकी उत्पति धरती में । सब जीवन प्रतिपाल ।
धरती न जानती आप गुन । ऐसा गुरु बिचार ।
धरती न जानती आप गुन । कभी न होती डोल ।
तिलतिल होती गरुआ । हती टिकोकी मोल ।
जहिया किरतम ना हता । धरती हती न नीर ।
उत्पति परलय ना हती । तबकी कही कबीर ।
जहाँ बोलत तहँ अक्षर आया । जहँ अक्षर तहँ मनहिं दृढाया ।
बोल अबोल एक है सोई । जिन्ह यह लषा सो बिरला होई ।
तौ लों तारा जगमगै । जोलैं उगै न सूर ।
तौ लौं जीव कर्म बस डोलै । जौ लैं ग्यान न पूर ।
नाम न जानै गाँव का । भूला मारग जाए ।
काल पडेगा काँटवा । अगमन कसन कराए ।
संगत कीजै साधु की । हरै और का ब्याध ।
ओछी संगत कूर की । आठौ पहर उपाध ।
संगति से सुष ऊपजै । कुसंगति से दुष होए ।
कहैं कबीर तहँ जाइये । जहँ संगति अपनी होए ।
जैसी लागी ओर की । वैसी निवहै छोर ।
कौडी कौडी जोर के । पूंजी लाष करोर ।
आज काल दिन एक में । अस्थिर नहीँ सरीर ।
कहैं कबीर कस राषिहो । जस काचे बासन नीर ।
वह बंधन से बाँधिया । एक बिचारा जीव ।
की बल छूटे आपने । किया छुडावै पीव ।
जिव मति मारहु बापुरा । सबका एकै प्रान ।
हत्या कबहुँ न छूटि है । जो कोटिन सुनो पुरान ।
जीव घात न कीजिये । बहुरि लेत वह कान ।
तीरथ गये न बांचिहो । कोटि हीरा देव दान ।
तीरथ गये तीन जना । चित चंचल मन चोर ।
एको पाप न काटिया । लादिन दस मन और ।
तीर्थ गये ते वहि मुए । जूडे पानी नहाए ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो । राक्षस होय पछिताय ।
तीर्थ भई बिस बेलरी । रही जुगन जुग छाए ।
कबिरन मूल निकंदिया । कौन हलाहल षाए ।
हे गुनवंती बेलरी । तव गुन बरनि न जाए ।
जर काटे ते हरियरी । सीचे ते कुम्हिलाय ।
बेल कुढंगी फल बुरो । फुलवा कुबुधि बसाए ।
वो विनस्टी तू मरी । सरोपात करुवाए ।
पानी ते अति पातला धूआं ते अति झीन ।
पवनहु ते उतावला दोस्त कबीरा कीन्ह ।
सतगुरु वचन सुनो हो संतो । मत लीजे सिर भार ।
हौं हजूर ठाढ कहत हों । अब तैं समर संभार ।
वो करुवाई बेलरी । औ करुवा फल तोर ।
सिंधु नाम जब पाइये । बेलि बिछोहा होर ।
सिद्ध भया तो क्या भया । चहुँ दिस फूटी बास ।
अंतर वाके बीज है । फिर जामन की आस ।
परदे पानी ढारिया । संतो करो बिचार ।
सरमा सरमी पचि मुआ । काल घसीटन हार ।
आस्तिक हों तो कोई न पतीजै । बिना अस्तिका सिद्ध ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो । हिरहि हीरी बिद्ध ।
सोना सज्जन साधुजन । टूटि जुटहिं सौ बार ।
दुर्जन कुम्भ कुम्हार का । एकै धका दरार ।
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