पहिले एक शब्द समुदाय, बाबन रूप धरे छितराय ।
इच्छा नारि धरे तेहि भेष, ताते ब्रह्मा विष्णु
महेश ।
चारिउ उर पुरु बाबन जागे, पंच अठरह कंठहि लागे ।
तालू पंच शून्य सो आय, दश रसना के पूत कहाय ।
पांच अधर अधर ही मा रहै, शुन्ने कंठ समोधे वहै ।
ओठ कंठ ले प्रगटे ठौर, बोलन लागे और के और ।
एक शब्द समुदाय जो, जामे चार प्रकार ।
काल शब्द, संधि शब्द, झांई औ पुनि
सार । 9
पांच तीनि नौ छौ औ चार, और अठारह करे पुकार ।
कर्म धर्म तीरथ के भाव, ई सब काल शब्द के दाव ।
सोऽहं आत्मा ब्रह्म लखाव, तत्वमसी मृत्युंजय भाव ।
पंचकोश नवकोश बखान, सत्य झूठ में करे अनुमान
।
ईश्वर साक्षी जाननिहार, ये सब संधिक कहै विचार ।
कारज कारण जहाँ न होय, मिथ्या को मिथ्या कहि
सोय ।
बैन चैन नहि मौन रहाय, ई सब झांई दीन भुलाय ।
कोइ काहू का कहा न मान, जो जेहि भावे तहं अरुझान
।
परे जीव तेहि यम के धार, जौं लो पावे शब्द न सार
।
जीव दुसह दुख देखि दयाल, तब प्रेरी प्रभु परख
रिसाल ।
परखाये प्रभु एक को, जामे चार प्रकार ।
काल संधि जांई लखी, लखी शब्द मत सार । 10
प्रथमे एक शब्द आरूढ़, तेहि तकि कर्म करे बहु
मूढ़ ।
ब्रह्म भरम होय सब में पैठा, निरमल होय फ़िरे बहु ऐंठा
।
भरम सनातन गावे पांच, अटकि रहै नर भव की खांच
।
आगे पीछे दहिने बांयें, भरम रहा है चहुदिशि छाये
।
उठी भर्म नर फ़िरै उदास, घर को त्यागि कियो वनवास
।
भरम बढ़ी सिर केश बढ़ावे, तके गगन कोई बांह उठावे
।
द्वै तारी कर नासा गहै, भरमि क गुरु बतावे लहै ।
भरम बढ़ी अरु घूमन लागे, बिनु गुरु पारख कहु को
जागे ।
कहैं कबीर पुकार के, गहहु शरण तजि मान ।
परखावे गुरु भरम को, वानि खानि सहिदानि । 11
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