भरम जीव परमातम माया, भरम देह औ भरम निकाया ।
अनहद नाद औ ज्योति प्रकास, आदि अन्त लौ भरम हि भास
।
इत उत करे भरम निरमान, भरम मान औ भरम अमान ।
कोहं जगत कहाँ से भया, ई सब भरम अती निरमया ।
प्रलय चारि भ्रम पुण्य औ पाप, मन्त्र जाप पूजा भ्रम
थाप ।
बाट बाट सब भरम है, माया रची बनाय ।
(बाप पूत दोऊ भरम है,
माया रची बनाय)
भेद बिना भरमे सकल, गुरु बिन कहाँ लखाय । 12
बाप पूत दोऊ भरम, आध कोश नव पांच ।
बिन गुरु भरम न छूटे, कैसे आवे सांच । 13
कलमा बांग निमाज गुजारै, भरम भई अल्लाह पुकारे ।
अजब भरम यक भई तमासा, ला मुकाम बेचून निवासा ।
बेनमून वह सबके पारा, आखिर ताको करौ दीदारा ।
रगरै महजिद नाक अचेत, निंदे बुत परस्त तेहि
हेत ।
बाबन तीस बरन निरमाना, हिन्दू तुरक दोऊ भरमाना
।
भरमि रहे सब भरम महँ, हिन्दू तुरक बखान ।
कहहिं ‘कबीर’ पुकार कै, बिनु गुरु को पहिचान । 14
भरमत भरमत सबै भरमाने, रामसनेही बिरला जाने ।
तिरदेवा सब खोजत हारे, सुर नर मुनि नहि पावत
पारे ।
थकित भया तब कहा बेअन्ता, विरहनि नारि रही बिनु
कन्ता ।
कोटिन तरक करें मन माही, दिल की दुविधा कतहुं न
जाही ।
कोई नख शिख जटा बढ़ावैं, भरमि भरमि सब जहँ तहँ
धावैं ।
बाट न सूझै भई अंधेरी, होय रही बानी की चेरी ।
नाना पन्थ बरनि नहि जाई, जाति वरण कुल नाम बङाई ।
(जाति कर्म गुन नाम बङाई)
रैन दिवस वे ठाढ़े रहही, वृक्ष पहार काहि नहीं
तरहीं ।
खसम न चीन्हे बाबरी, पर पुरुष लौ लीन ।
कहंहिं कबीर पुकार के, परी न बानी चीन । 15
कन रस की मतवाली नारि, कुटनी से खोजे लगवारि ।
कुटनी आँखिन काजर दियऊ, लागि बतावन ऊपर पियऊ ।
काजर ले के ह्वै गयी अन्धी, समुझ न परी बात की संधी
।
बाजे कुटनी मारे भटकी, ई सब छिनरो ता महं अटकी
।
विरहिन होय के देह सुखावै, कोई शिर महं केश बढ़ावै ।
मानि मानि सब कीन्ह सिंगारा, बिन पिय परसै सब अंगारा
।
अटकी नारि छिनारि सब, हरदम कुटनी द्वार ।
खसम न चीन्है बाबरी, घर घर फ़िरत खुवार । 16
1 टिप्पणी:
bahut hi acha likha hai aapne..
shukriya share karne k liye..
Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....
A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...
Banned Area News : Movie Review
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