नव दरवाजा भरम विलास, भरमहि बाबन बहे बतास ।
कनउज बाबन भूत समान, कहं लगि गनो सो प्रथम
उङान ।
माया ब्रह्म जीव अनुमान, मानत ही मालिक बौरान ।
अकबक भूत बके परचंड, व्यापि रहा सकलो
ब्रह्मंड ।
ई भर्म भूत की अकथ कहानी, गोत्यो जीव जहाँ नहि
पानी ।
तनक तनक पर दौरै बौरा, जहाँ जाये तहाँ पावे न
ठौरा ।
योगी राम भक्त बाबरा, ज्ञानी फ़िरे निखट्टू ।
संसारी को चैन नही है, ज्यों सराय को टट्टू । 17
इत उत दौरै सब संसार, छुटे न भरम किया उपचार ।
जरै जीव को बहुरि जरावै, काटे ऊपर लोन लगावै ।
योगी ऐसे हाल बनाई, उल्टी बत्ती नाक चलाई ।
कोई विभूति मृगछाला डारे, अगम पन्थ की राह निहारे
।
काहू को जल मांझ सुतावै, कहंरत हीं सब रैन गवांवै
।
भगती नारी कीन श्रंगार, बिन प्रिया परचै सबै
अंगार ।
एक गर्भ ज्ञान अनुमान, नारि पुरुष का भेद न जान
।
संसारी कहूँ कल नहि पावै, कहरत जग में जीव गंवावै
।
चारि दिशा में मन्त्री झारे, लिये पलीता मुलना हारे ।
जरै न भूत बङो बरियारा, काजी पण्डित पढ़ि पढ़ि
हारा ।
इन दोनों पर एकै भूत, झारेंगे क्या मां की चूत
।
भूत न उतरे भूत सों, सन्तों करो विचार ।
कहैं कबीर पुकार के, बिनु गुरु नहि निस्तार ।
18
परम प्रकाश भास जो, होत प्रोढ़ विशेष ।
तद प्रकाश संभव भई, महाकाश सो शेष । 19
झांई संभव बुद्धि ले, करी कल्पना अनेक ।
सो परकाशक जानिये, ईश्वर साक्षी एक । 20
विषम भई संकल्प जब, तदाकार सो रूप ।
महा अंधेरी काल सो, परे अविद्या कूप । 21
महा तत्व त्रीगुण पाँच तत्व, समिष्ठि व्यष्ठि परमान ।
दोय प्रकार होय प्रगटे, खंड अखंड सो जान । 22
1 टिप्पणी:
guru to bahut log bna lete hey.shishy koi wirla hi banta hey. wahi sachidanand ko pata hey. atah yogya bano shishya bano.kalyan ho.
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