भासे जीव रूप सो एक, तेही भास के रूप अनेक ।
कोई मगन रूप लौ लीन, कोइ अरूप ईश्वर मन दीन ।
कोई कहै कर्म रूप है सोय, शब्द निरूपन करे पुनि
कोइ ।
समय रूप कोई भगवान, कर्ता न्यारा कोई अनुमान
।
कोई कहै ईश्वर ज्योतिहि जान, आतम को कोई स्वतः बखान ।
कई कहि सब पुनि सब तै न्यारा, आपै राम विश्व विस्तारा
।
शब्द भाव कोई अनुमान, अद्वै रूप भई पहिचान ।
दुगदुग रही को बोले बात, बोलत ही सब तत्व नसात ।
बोल अबोल लखे पुनि कोय, भास जीव नहि परखै सोय ।
निज अध्यास झांई अहै, सो संधिक भौ भास ।
प्रथम अनुहारी कल्पना, सदा करे परकास । 27
लख चौरासी योनी जेते, देही बुद्धि जानिये तेते
।
जहँ जेहि भास सोई सोइ रूप, निश्चै किया परा भवकूप ।
नाना भांति विषय रस लीन, अरुझि अरुझि जिव मिथ्या
दीन ।
दावा विषय जरै सब लोय, बांचा चहै गहै पुनि सोय
।
दृढ़ विश्वास भरोसा राम, कबहू तो वे आवैं काम ।
विषय विकार मांझ संग्राम, राम खटोला किया अराम ।
घायल बिना तीर तरवार, सोइ अभरण जेहि रीझै
भरतार ।
कामिनी पहिर पिया सो राची, कहैं कबीर भव बूढ़त बांची
। 28
भव बूढ़त बेङा भगवान, चढ़े धाय लागी लौ ज्ञान ।
थाह न पावे कहे अथाह, डोलत करत तराहि तराह ।
सूझ परे नहि वार न पार, कहै अपार रहै मझधार ।
मांझधार में किया विवेक, कहाँ के दूजा कहाँ के एक?
बेरा आपु आपु भवधार, आपै उतरन चाहे पार ।
बिन जाने जाने है और, आपे राम रमै सब ठौर ।
वार पार ना जाने जोर, कहै कबीर पार है ठौर । 29
अक्षर खानी अक्षर वानी, अक्षर ते अक्षर उतपानी ।
अक्षर करता आदि प्रकास, ताते अक्षर जगत विलास ।
अक्षर ब्रह्मा विष्णु महेश, अक्षर सत रज तम उपदेश ।
छिति जल पावक मरुत अकास, ये सब अक्षर मो परकास ।
दश औतार सो अक्षर माया, अक्षर निर्गुण ब्रह्म
निकाया ।
अक्षर काल संधि अरु झांई, अक्षर दहिने अक्षर बांई
।
अक्षर आगे करे पुकार, अटके नर नहि उतरे पार ।
गुरुकृपा निज उदय विचार, जानि परी तब गुरु मतसार
।
जहाँ ओस को लेस नही, बूङे सकल जहान ।
गुरुकृपा निज परख बल, तब ताको पहिचान । 30
अक्षर काया अक्षर माया, अक्षर सतगुरु भेद बताया
।
अक्षर यन्त्र मन्त्र अरु पूजा, अक्षर ध्यान धरावत दूजा
।
अक्षर पढ़ि पढ़ि जगत भुलान, अक्षर बिनु नहि पावै
ज्ञान ।
बिन अक्षर नहि पावै गती, अक्षर बिन नहि पावै रती
।
अक्षर भये अनेक उपाय, अक्षर सुनि सुनि शून्य
समाय ।
अक्षर से भव आवै जाय, अक्षर काल सबन को खाय ।
अक्षर सबका भाखे लेखा, अक्षर उत्पति प्रलय
विशेखा ।
अक्षर की पावै सहिदानी, कहैं कबीर तब उतरे
प्रानी ।
परखावै गुरु कृपा करि, अक्षर की सहिदानि ।
निज बल उदथ विचारते, तब होवे भ्रम हानि । 31
बाबन के बहु बने तरंग, ताते भासत नाना रंग ।
उपजे औ पाले अनुसरै, बाबन अक्षर आखिर करे ।
राम कृष्ण दोऊ लहर अपार, जेहि पद गहि नर उतरे पार
।
महादेव लोमश नहि बांचे, अक्षर त्रास सबै मुनि
नाचे ।
ब्रह्मा विष्णु नाचे अधिकाई, जाको धर्म जगत सब गाई ।
नांचै गण गंधर्व मुनि देवा, नाचे सनकादिक बहु भेवा ।
अक्षर त्रास सबन को होई, साधक सिद्ध बचे नही कोई
।
अक्षर त्रास लखे नही कोई, आदि भूल बंछे सब लोई ।
अक्षर सागर अक्षर नाव, करणधार अक्षर समुदाव ।
अक्षर सबका भेद बखान, बिन अक्षर अक्षर नहि जान
।
अक्षर आस ते फ़ंदा परे, अक्षर लखे ते फ़ंदा टरे ।
गुरु सिष अक्षर लखे लखावे, चौरासी फ़ंदा मुक्तावै ।
बिनु गुरु अक्षर कौन छुङावै, अक्षर जाल ते कौन बचावै
।
संचित क्रिया उदय जब होय, मानुष जन्म पावे तब सोय
।
गुरु पारख बल उदय विचार, परख लेहु जगत गुरु मुख
सार ।
अस्ति हंस प्रकास अपार, गुरुमुख सुख निज अति
दातार । 32
अक्षर है तिहु भर्म का, बिनु अक्षर नहिं जान ।
गुरु कृपा निज बुद्धि बल, तब होवै पहिचान । 33
जहंवा से सब प्रगटे, सो हम समझत नाहिं ।
यह अज्ञान है मानुषा, सो गुरु ब्रह्म कहि ताहि
। 34
ब्रह्म विचारे ब्रह्म को, पारख गुरु परसाद ।
रहित रहै पद परखि कै, जिव से होय अवाद । 35
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