गुरुवार, जुलाई 12, 2018

अष्टांगी कन्या और काल-निरंजन


सहज के द्वारा सत्यपुरुष के ऐसे वचन सुनकर निरंजन प्रसन्न होकर अहंकार से भर गया
और मानसरोवर चला आया । फ़िर जब उसने सुन्दर कामिनी अष्टांगी कन्याको आते हुये देखा, तो उसे अति प्रसन्नता हुयी ।

अष्टांगी का अनुपम सौंदर्य देखकर निरंजन मुग्ध हो गया उसकी सुन्दरता की कला का अन्त नहीं था । यह देखकर काल-निरंजन बहुत व्याकुल हो गया ।

कबीर साहब बोले - धर्मदास, काल-निरंजन की क्रूरता सुनो वह अष्टांगी कन्या को ही निगल गया । जब अन्यायी काल-निरंजन अष्टांगी का ही आहार करने लगा तब उस कन्या को काल-निरंजन के प्रति बहुत आश्चर्य हुआ ।

जब वह उसे निगल रहा था तो अष्टांगी ने सत्यपुरुष को ध्यान करके पुकारा कि काल-निरंजन ने मेरा आहार कर लिया है ।

अष्टांगी की पुकार सुनकर सत्यपुरुष ने सोचा कि यह काल-निरंजन तो बहुत क्रूर और अन्यायी है । इस कन्या की तरह ही पहले कूर्म ने ध्यान करके मुझे पुकारा था कि काल-निरंजन ने मेरे तीन शीश खा लिये हैं । सत्यपुरुष, आप मुझ पर दया कीजिये ।

कबीर साहब बोले काल-निरंजन का ऐसा क्रूर चरित्र जानकर सत्यपुरुष ने उसे शाप दिया कि वह प्रतिदिन लाख जीवों को खायेगा, और सवा लाख का विस्तार करेगा ।

फ़िर सत्यपुरुष ने ऐसा भी विचार किया कि इस कालपुरुष को मिटा ही डालें क्योंकि अन्यायी और क्रूर काल-निरंजन बहुत ही कठोर और भयंकर है । यह सभी जीवों का जीवन बहुत दुखी कर देगा ।

लेकिन अब वह मिटाने से भी नहीं मिट सकता था, क्योंकि एक ही नाल से वे सब सोलह सुत उत्पन्न हुये थे अतः एक को मिटाने से सभी मिट जायेंगे । और मैंने सबको अलग लोकदीप देकर जो रहने का वचन दिया है वह डांवाडोल हो जायेगा, और मेरी ये सब रचना भी समाप्त हो जायेगी । अतः इसको मारना ठीक नहीं है ।

सत्यपुरुष ने विचार किया कि कालपुरुष को मारने से उनका वचन भंग हो जायेगा ।
अतः अपने वचन का पालन करते हुये उसे न मारकर यह कहता हूँ कि अब वह कभी हमारा दर्शन नहीं पायेगा ।

यह कहते हुये सत्यपुरुष ने योगजीत को बुलवाया, और सब हाल कहा कि किस तरह काल-निरंजन ने अष्टांगी कन्या को निगल लिया, और कूर्म के तीन शीश खा लिये ।

उन्होंने कहा - योगजीत, तुम शीघ्र मानसरोवर दीप जाओ, और वहाँ से निरंजन को मारकर निकाल दो । वह मानसरोवर में न रहने पाये, और हमारे देश सत्यलोक में कभी न आने पाये ।

निरंजन के पेट में अष्टांगी नारी है । उससे कहो कि वह मेरे वचनों का संभाल कर पालन करे । निरंजन जाकर उसी देश में रहे, जो मैंने पहले उसे दिये हैं अर्थात वह स्वर्गलोक, मृत्युलोक, और पाताल पर अपना राज्य करे । वह अष्टांगी नारी निरंजन का पेट फ़ाङकर बाहर निकल आये जिससे पेट फ़टने से वह अपने कर्मों का फ़ल पाये । निरंजन से निर्णय करके कह दो कि वह अष्टांगी नारी ही अब तुम्हारी स्त्री होगी ।

योगजीत सत्यपुरुष को प्रणाम करके मानसरोवर दीप आये ।

काल-निरंजन उन्हें वहाँ आया देखकर भयंकर रूप हो गया और बोला - तुम कौन हो, और किसने तुम्हें यहाँ भेजा है?

योगजीत ने कहा - अरे निरंजन, तुम नारी को ही खा गये अतः सत्यपुरुष ने मुझे आज्ञा दी कि तुम्हें शीघ्र ही यहाँ से निकालूँ ।

योगजीत ने निरंजन के पेट में समायी हुयी अष्टांगी से कहा - अष्टांगी, तुम वहाँ क्यों रहती हो । तुम सत्यपुरुष के तेज का सुमिरन करो, और पेट फ़ाङकर बाहर आ जाओ ।

योगजीत की बात सुनकर निरंजन का ह्रदय क्रोध से जलने लगा, और वह योगजीत से भिङ गया ।

योगजीत ने सत्यपुरुष का ध्यान किया, तो सत्यपुरुष ने आज्ञा दी कि वह निरंजन के माथे के बीच में जोर से घूंसा मारे ।

योगजीत ने ऐसा ही किया ।

फ़िर योगजीत ने निरंजन की बाँह पकङ कर उसे उठाकर दूर फ़ेंक दिया, तो वह सत्यलोक के मानसरोवर दीप से अलग जाकर दूर गिर पङा । सत्यपुरुष के डर से वह डरता हुआ सँभल सँभलकर उठा । फ़िर अष्टांगी कन्या निरंजन के पेट से निकली वह काल-निरंजन से बहुत भयभीत थी ।

वह सोचने लगी कि अब मैं वह देश न देख सकूंगी मैं न जाने किस प्रकार यहाँ आकर गिर पङी यह कौन बताये । वह निरंजन से बहुत डरी हुयी थी, और सकपका कर इधर उधर देखती हुयी निरंजन को शीश नवा रही थी ।

तब निरंजन बोला - हे आदिकुमारी सुनो, अब तुम मेरे डर से मत डरो । सत्यपुरुष ने तुम्हें मेरे कामके लिये रचा है । हम तुम दोनों एकमति होकर सृष्टि रचना करें । मैं पुरुष हूँ, और तुम मेरी स्त्री हो अतः तुम मेरी यह बात मान लो ।

अष्टांगी बोली - तुम यह कैसी वाणी बोलते हो, मैं तो तुम्हें बङा भाई मानती हूँ । इस प्रकार जानते हुये भी तुम मुझसे ऐसी बातें मत करो । जब से तुमने मुझे पेट में डाल लिया था, और उससे उत्पन्न होने पर अब तो मैं तुम्हारी पुत्री भी हो गयी हूँ । बङे भाई का रिश्ता तो पहले से ही था, अब तो तुम मेरे पिता भी हो गये हो । अब तुम मुझे साफ़ दृष्टि से देखो, नहीं तो तुमसे यह पाप हो जायेगा अतः मुझे विषयवासना की दृष्टि से मत देखो ।

निरंजन बोला - भवानी सुनो, मैं तुम्हें सत्य बताकर अपनी पहचान कराता हूँ । पाप, पुण्य के डर से मैं नहीं डरता क्योंकि पाप, पुण्य का मैं ही तो कर्ता (कराने वाला) हूँ । पाप, पुण्य मुझसे ही होंगे, और मेरा हिसाब कोई नहीं लेगा । पाप, पुण्य को मैं ही फ़ैलाऊँगा जो उसमें फ़ँस जायेगा, वही मेरा होगा । अतः तुम मेरी इस सीख को मानो । सत्यपुरुष ने मुझे कह, समझा कर तुझे दिया है अतः तुम मेरा कहना मानो ।

निरंजन की ऐसी बातें सुनकर अष्टांगी हंसी, और दोनों एकमति होकर एक दूसरे के रंग में रंग गये । अष्टांगी मीठी वाणी से रहस्यमय वचन बोली, और फ़िर उस नीच बुद्धि स्त्री ने विषयभोग की इच्छा प्रकट की । उसके रति विषयक रहस्यमय वचन सुनकर निरंजन बहुत प्रसन्न हुआ, और उसके भी मन में विषयभोग की इच्छा जाग उठी ।

निरंजन और अष्टांगी दोनों परस्पर रतिक्रिया में लग गये । तब कहीं चैतन्य सृष्टि का विशेष आरम्भ हुआ ।

धर्मदास, तुम आदि-उत्पत्ति का यह भेद सुनो जिसे भ्रमवश कोई नहीं जानता । उन दोनों ने तीन बार रतिक्रिया की जिससे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश हुये । उनमें ब्रह्मा सबसे बङे, मंझले विष्णु और सबसे छोटे शंकर थे । इस प्रकार अष्टांगी और निरंजन का रति प्रसंग हुआ । उन दोनों ने एकमति होकर भोगविलास किया तब उससे आदिउत्पत्ति का प्रकाश हुआ ।


10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

क्या ये सत्य है

Jagesh ने कहा…

Ha yahi sataya hai

Unknown ने कहा…

ये असत्य है

Unknown ने कहा…

मानो तो ये सत्य वचन है । ना मानो तो असत्य

Unknown ने कहा…

ऐसा ही है। कबीर सागर में प्रमाण है।
संत रामपाल जी महाराज ने इसका प्रमाण वेदों व पुराणों में प्रमाण सहित दिखाया है। कोई भी संत रामपाल जी के सत्संग वीडियो यूट्यूब पर देख सकता है।

arpit ने कहा…

अरे बाप रे ये सब क्या है

Rohit Kothari ने कहा…

कबीर ज्ञान {संत रामपाल जी महाराज की जय हो}

Unknown ने कहा…

निरंजन के पिता कौन हैं

Unknown ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

हाँ ये सत्य है।

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।