गुरुवार, जुलाई 12, 2018

काल-निरंजन का छलावा, बारह पंथ


धर्मदास बोले - काल-निरंजन ने जीव को भरमाने के लिये जो अपने बारह पंथ चलाये, वे मुझे समझा कर कहो ।

कबीर साहिब बोले - मैं तुमसे काल के बारह पंथके बारे कहता हूँ । मृत्युअंधानाम का दूत जो छल बल में शक्तिशाली है । वह स्वयं तुम्हारे घर में उत्पन्न हुआ है ।
यह पहला पंथ है ।
दूसरा तिमिर दूतचलकर आयेगा उसकी जाति अहीर होगी, और वह नफ़र यानी गुलाम कहलायेगा । वह तुम्हारी बहुत सी पुस्तकों से ज्ञान चुराकर अलग पंथ चलायेगा ।
तीसरा पंथ का नाम अंधा अचेतदूत होगा वह सेवक होगा । वह तुम्हारे पास आयेगा और अपना नाम सुरति गोपालबतायेगा । वह भी अपना अलग पंथ चलायेगा, और जीव को अक्षरयोग’ (काल-निरंजन) के भ्रम में डालेगा ।

धर्मदास, चौथा मनभंगनाम का कालदूत होगा । वह कबीरपंथ की मूलकथा का आधार लेकर अपना पंथ चलायेगा, और उसे मूलपंथ कहकर संसार में फ़ैलायेगा । वह जीवों को लूदीनाम लेकर समझायेगा । उपदेश करेगा, और इसी नाम को पारसकहेगा । वह शरीर के भीतर झंकृत होने वाले शून्य के झंगशब्द का सुमरन अपने मुख से वर्णन करेगा । सब जीव उसे थाकाकहकर मानेंगे ।

धर्मदास पाँचवे पंथको चलाने वाला ज्ञानभंगीनाम का दूत होगा । उसका पंथ टकसार नाम से होगा । वह इंगला, पिंगला, नाङियों के स्वर को साधकर भविष्य की बात करेगा । जीव को जीभ, नेत्र, मस्तक की रेखा के बारे में बता कर समझायेगा ।
जीवों के तिल, मस्सा आदि चिह्न देखकर उन्हें भ्रम रूपी धोखे में डालेगा । वह जिस जीव के ऊपर जैसा दोष लगायेगा । वैसा ही उसको पान खिलायेगा (नाम आदि देना)

छठा पंथकमाल नाम का है । वह मन मकरंददूत के नाम से संसार में आया है ।
उसने मुर्दे में वास किया, और मेरा पुत्र होकर प्रकट हुआ । वह जीवों को झिलमिल ज्योति का उपदेश करेगा (जो अष्टांगी ने विष्णु को दिखाकर भरमा दिया) और इस तरह वह जीवों को भरमायेगा ।

जहाँ तक जीव की दृष्टि है, वह झिलमिल ज्योति ही देखेगा । जिसने दोनों आँखों से झिलमिल ज्योति नहीं देखी है, वह कैसे झिलमिल ज्योति के रूप को पहचानेगा? झिलमिल ज्योति काल-निरंजन की है । उस दूत के ह्रदय में सत्य मत समझो, वह तुम्हें भरमाने के लिये है ।

सातवां दूत चितभंगहै । वह मन की तरह अनेक रंग-रूप बदल कर बोलेगा । वह दीननाम कहकर पंथ चलायेगा, और देह के भीतर बोलने वाले आत्मा को ही सत्यपुरुष बतायेगा । वह जगत सृष्टि में पाँच तत्व, तीन गुण बतायेगा, और ऐसा ज्ञान करता हुआ अपना पंथ चलायेगा । इसके अतिरिक्त आदिपुरुष, काल-निरंजन, अष्टांगी, ब्रह्मा आदि कुछ भी नहीं हैं । ऐसा भ्रम बनायेगा ।

सृष्टि हमेशा से है, तथा इसका कर्ता धर्ता कोई नहीं है । इसी को वह ठोस बीजकज्ञान कहेगा । वह कहेगा कि अपना आपा ही ब्रह्म है । वही वचन वाणी बोलता है तो फ़िर सोचो गुरू का क्या महत्व और आवश्यकता है ?

श्रीराम ने वशिष्ठ को, और श्रीकृष्ण ने दुर्वासा को गुरू क्यों बनाया । जब श्रीकृष्ण जैसों ने गुरूओं की सेवा की तो ऋषियों मुनियों की फ़िर गिनती ही क्या है? नारद ने गुरू को दोष लगाया तो विष्णु ने उनसे नरक भुगतवाया ।

जो बीजक ज्ञान वह दूत थोपेगा । वह ऐसा होगा जैसे गूलर के भीतर कीङा घूमता है तथा वह कीङा समझता है कि संसार इतना ही है । अपने आपको कर्ता धर्ता मानने से जीव का कभी भला न होगा । अपने आपको ही मानने वाला जीव रोता रहेगा ।

आठवां पंथ चलाने वाला अकिल भंगदूत होगा । वह परमधाम कहकर अपना पंथ चलायेगा । कुछ कुरआन तथा वेद की बातें चुराकर अपने पंथ में शामिल करेगा । वह कुछ कुछ मेरे निर्गुण मत की बातें लेगा, और उन सब बातों को मिलाकर एक पुस्तक बनायेगा । इस प्रकार जोङ जाङ कर वह ब्रह्मज्ञान का पंथ चलायेगा । उसमें कर्म आश्रित (यानी ज्ञानरहित ज्ञान आश्रित नहीं, कर्म ही पूजा है, मानने वाले) जीव बहुत लिपटेंगे ।

नौवां पंथ विशंभर दूतका होगा, और उसका जीवन चरित्र ऐसा होगा कि वह राम कबीरनाम का पंथ चलायेगा । वह निर्गुण, सगुण दोनों को मिलाकर उपदेश करेगा ।
पाप पुण्य को एक समझेगा । ऐसा कहता हुआ वह अपना पंथ चलायेगा ।

दसवां पंथ के दूत का नाम नकटा नैनहै । वह सतनामीकहकर पंथ चलायेगा और चार वर्णके जीवों को एक में मिलायेगा । वह अपने वचन उपदेश में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सबको एक समान मिलायेगा । परन्तु वह सदगुरू के शब्द उपदेश को नहीं पहचानेगा । वह अपने पक्ष को बाँधकर रखेगा जिससे जीव नरक को जायेंगे । वह शरीर का ज्ञान कथन सब समझायेगा परन्तु सत्यपुरुष के मार्ग को नहीं पायेगा ।

धर्मदास, काल-निरंजन की चालबाजी की बात सुनोवह जीवों को फ़ँसाने के लिये बङे बङे फ़ंदों की रचना करता है । वह काल जीव को अनेक कर्म (पूजा आदि आडंबर, सामाजिक रीति रिवाज) और कर्मजाल में ही जीव को फ़ाँस कर खा जाता है । जो जीव सारशब्द को पहचानता है, समझता है । वह इस काल-निरंजन के यम जाल से छूट जाता है, और श्रद्धा से सत्यनाम का सुमरन करते हुये अमरलोक को जाता है ।

 ग्यारहवें पंथको चलाने वाला दुर्गदानीनाम का कालदूत अत्यन्त बलशाली होगा । वह जीवपंथनाम कहकर पंथ चलायेगा, और शरीर ज्ञान के बारे में समझायेगा ।
उससे भोले अज्ञानी जीव भरमेंगे, और भवसागर से पार नहीं होंगे । जो जीव बहुत अधिक अभिमानी होगा । वह उस कालदूत की बात सुनकर उससे प्रेम करेगा ।

बारहवें पंथका कालदूत हंसमुनिनाम का होगा । वह बहुत तरह के चरित्र करेगा ।
वह वचन वंश के घर में सेवक होगा, और पहले बहुत सेवा करेगा । फ़िर पीछे (अर्थात पहले विश्वास जमायेगा, और जब लोग उसको मानने लगेंगे) वह अपना मत प्रकट करेगा, और बहुत से जीवों को अपने जाल में फ़ँसा लेगा, और अंश-वंश (कबीर साहब के स्थापित ज्ञान) का विरोध करेगा । वह उसके ज्ञान की कुछ बातों को मानेगा । कुछ को नहीं मानेगा ।

इस प्रकार काल-निरंजन जीवों पर अपना दांव फ़ेंकते हुये उन्हें अपने फ़ंदे में (असली ज्ञान से दूर) बनाये रखेगा यानी ऐसी कोशिश करेगा । वह अपने इन अंशों (कालदूतों) से बारह पंथ (झूठे ज्ञान को फ़ैलाने हेतु) प्रकट करायेगा, और ये दूत सिर्फ़ एक बार ही प्रकट नहीं होंगे । बल्कि वे उन पंथों में बारबार आते जाते रहेंगे, और इस तरह बारबार संसार में प्रकट होंगे ।

जहाँ जहाँ भी ये दूत प्रकट होंगे । जीवों को बहुत ज्ञान (भरमाने वाला) कहेंगे, और वे यह सब खुद को कबीरपंथी बताते हुये करेंगे । और वे शरीर ज्ञान का कथन करके सत्यज्ञान के नाम पर काल निरंजन की ही महिमा को घुमा फ़िरा कर बतायेंगे, और अज्ञानी जीव को काल के मुँह में भेजते रहेंगे । काल-निरंजन ने ऐसा ही करने का उनको आदेश दिया है ।

जब जब निरंजन के ये दूत संसार में जन्म लेकर प्रकट होंगे तब तब ये अपना पंथ फ़ैलायेंगे । वे जीवों को हैरान करने वाली विचित्र बातें बतायेंगे, और जीवों को भरमा कर नरक में डालेंगे ।

धर्मदास, ऐसा वह काल-निरंजन बहुत ही प्रबल है । वह तथा उसके दूत कपट से जीवों को छल बुद्धि वाला ही बनायेंगे ।
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आत्मज्ञान की हंसदीक्षाऔर परमहंस दीक्षामें वाणी या अन्य इन्द्रियों का कोई स्थान नहीं हैं । दोनों ही दीक्षाओं में सुरति को दो अलग-अलग स्थानों से जोङा जाता है । मतलब ध्यान बारबार वहीं ले जाने का अभ्यास किया जाता है ।

जब ध्यान पर साधक की पकङ हो जाती है तो ये ध्यान खुद ब खुद अपने आप होने लगता है, और तीन महीने के ही सही अभ्यास से दिव्यदर्शन, अन्तर्लोकों की सैर, भंवर गुफ़ा, आसमानी झूला आदि बहुत अनुभव होते हैं ।

दूसरे, दीक्षा के बाद एक स्थायी सी शांति महसूस होती है । जैसी पहले कभी महसूस  नहीं की, और आपकी जिन्दगी में, स्वभाव में एक मजबूती सी आ जाती है । इसीलिये सन्तों ने कहा है - फ़िकर मत कर, जिकर कर ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।