सुमिरन
की सुधि यौं करो, ज्यौं सुरभी सुत मांहि।
कहै
कबीरा चारा चरत, बिसरत कबहूं नांहि॥
सुमिरन
की सुधि यौं करो, जैसे दाम कंगाल।
कहैं
कबीर बिसरै नहीं, पल पल लेत संभाल॥
सुमिरन
की सुधि यौं करो, जैसे नाद कुरंग।
कहैं
कबीर बिसरै नहीं, प्रान तजै तिहि संग॥
सुमिरन
की सुधि यों करो, ज्यौं सुई में डोर।
कहैं
कबीर छूटै नही, चलै ओर की ओर॥
सुमिरन
सों मन लाइये, जैसे कीट भिरंग।
कबीर
बिसारे आपको, होय जाय तिहि रंग॥
सुमिरन
सों मन लाइये, जैसे दीप पतंग॥
प्रान
तजै छिन एक में, जरत न मोरै अंग॥
सुमिरन
सों मन लाइये, जैसे पानी मीन।
प्रान
तजै पल बीछुरे, दास कबीर कहि दीन॥१००
सुमिरन
सों मन जब लगै, ज्ञानांकुस दे सीस।
कहैं
कबीर डोलै नहीं, निश्चै बिस्वा बीस॥
सुमिरन
मन लागै नही, विषहि हलाहल खाय।
कबीर
हटका ना रहै, करि करि थका उपाय॥
सुमिरन
मांहि लगाय दे, सुरति आपनी सोय।
कहै
कबीर संसार गुन, तुझै न व्यापै कोय॥
सुमिरन
सुरति लगाय के, मुख ते कछू न बोल।
बाहर
के पट देय के, अंतर के पट खोल॥
सुमिरन
तूं घट में करै, घट ही में करतार।
घट ही
भीतर पाइये, सुरति सब्द भंडार॥
राजा
राना राव रंक, बङो जु सुमिरै नाम।
कहैं
कबीर सबसों बङा, जो सुमिरै निहकाम॥
सहकामी
सुमिरन करै, पावै उत्तम धाम।
निहकामी
सुमिरन करै, पावै अविचल राम॥
जप तप
संजम साधना, सब कछु सुमिरन मांहि।
कबीर
जाने भक्तजन, सुमिरन सम कछु नांहि॥
थोङा
सुमिरन बहुत सुख, जो करि जानै कोय।
हरदी
लगै न फ़िटकरी, चोखा ही रंग होय॥
ज्ञान
कथे बकि बकि मरै, काहे करै उपाय।
सतगुरू
ने तो यों कहा, सुमिरन करो बनाय॥
कबीर
सुमिरन सार है, और सकल जंजाल।
आदि
अंत मधि सोधिया, दूजा देखा काल॥
कबीर
हरि हरि सुमिरि ले, प्रान जाहिंगे छूट।
घर के
प्यारे आदमी, चलते लेंगे लूट॥
कबीर
चित चंचल भया, चहुँदिस लागी लाय।
गुरू
सुमिरन हाथे घङा, लीजै बेगि बुझाय॥
कबीर
मेरी सुमिरनी, रसना ऊपर राम।
आदि
जुगादि भक्ति है, सबका निज बिसराम॥
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