शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

सुमिरन को अंग 7


ऐसे महँगे मोल का, एक सांस जो जाय।
चौदह लोक न पटतरै, काहे धूर मिलाय॥

माला सांसउ सांस की, फ़ेरै कोइ निज दास।
चौरासी भरमै नहीं, कटै करम की फ़ांस॥

माला फ़ेरत मन खुशी, ताते कछू न होय।
मन माला के फ़ेरते, घट उजियारो होय॥

माला फ़ेरत जुग गया, मिटा न मन का फ़ेर।
कर का मनका डार देम मन का मनका फ़ेर॥

जे राते सतनाम सों, ते तन रक्त न होय।
रति इक रक्त न नीकसे, जो तन चीरै कोय॥

माला तो कर में फ़िरै, जीभ फ़िरै मुख मांहि।
मनवा तो दहु दिस फ़िरै, यह तो सुमिरन नांहि॥

माला फ़ेरूँ ना हरि भजूँ, मुख से कहूँ न राम।
मेरा हरि मोको भजे, तब पाऊँ बिसराम॥

माला मोसे लङि पङी, का फ़ेरत है मोहि।
मन की माला फ़ेरि ले, गुरू से मेला होय॥

माला फ़ेरै कह भयो, हिरदा गांठि न खोय।
गुरू चरनन चित राचिये, तो अमरापुर जोय॥

कबीर माला काठ की, बहुत जतन का फ़ेर।
माला सांस उसांस की, जामें गांठ न मेर॥

क्रिया करै अंगुरि गिनै, मन धावै चहुँ ओर।
जिहि फ़ेरै साईं मिलै, सो भय काठ कठोर॥150

तन थिर मन थिर वचन थिर, सुरति निरति थिर होय।
कहैं कबीर उस पलक को, कल्प न पावै कोय॥

जाप मरै अजपा मरै, अनहद भी मरि जाय।
सुरति समानी सब्द में, ताहि काल न खाय॥

बिना सांच सुमिरन नहीं, भेदी भक्ति न सोय।
पारस में परदा रहा, कस लोहा कंचन होय॥

हिरदे सुमिरनि नाम की, मेरा मन मसगूल।
छवि लागै निरखत रहूँ, मिटि गये संसै सूल॥

देखा देखी सब कहै, भोर भये हरि नाम।
अरध रात को जन कहै, खाना जाद गुलाम॥

नाम रटत अस्थिर भया, ज्ञान कथत भया लीन।
सुरति सब्द एकै भया, जल ही ह्वैगा मीन॥

कहता हूँ कहि जात हूँ, सुनता है सब कोय।
सुमिरन सों भल होयगा, नातर भला न होय॥

कबीर माला काठ की, पहिरी मुगद डुलाय।
सुमिरन की सुधि है नहीं, डीगर बांधी गाय॥

नाम जपे अनुराग से, सब दुख डारै धोय।
विश्वासे तो गुरू मिले, लोहा कंचन होय॥

सब मंत्रन का बीज है, सत्तनाम ततसार।
जो कोई जन हिरदै धरे, सो जन उतरै पार॥

जब जागै तब नाम जप, सोवत नाम संभार।
ऊठत बैठत आतमा, चालत नाम चितार॥

सुमिरन ऐसो कीजिये, खरे निशाने चोट।
सुमिरन ऐसो कीजिये, हाले जीभ न होठ॥

ओठ कंठ हाले नहीं, जीभ न नाम उचार।
गुप्तहि सुमिरन जो लखे, सोई हंस हमार॥

अंतर हरि हरि होत है, मुख की हाजत नाहि।
सहजे धुनि लागी रहे, संतन के घट मांहि॥

अंतर जपिये रामजी, रोम रोम रकार।
सहजे धुन लागी रहे, येही सुमिरन सार॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।