शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

अनुरागी के लक्षण


कबीर साहब बोले - जो शब्द की जाँच करता है, और गुणों को भलीभांति परखता है । ऐसा ही कोई श्रद्धा रखने वाला जिज्ञासु ही सत्यज्ञान को पायेगा । सदगुरू के सद-उपदेश को सच्चे ज्ञान का अधिकारी मन लगाकर ध्यानपूर्वक सुनता है । जब चमकते हुये सूर्य के समान सदगुरू का सत्यज्ञान ह्रदय में प्रकाशित होता है, तब मोह माया रूपी अँधकार नष्ट होकर सब कुछ अपने वास्तविक रूप में दिखाई देने लगता है, और सब भ्रम मिट जाते हैं ।

लाखों करोङों में से कोई एक ज्ञानवान संत सज्जन होता है । जो सारशब्द को गम्भीरता से विचार करके अपने ह्रदय में धरता है । जिनके ह्रदय में परम-पिता परमात्मा के प्रति सच्चा भक्ति प्रेम निवास करता है, वही ज्ञानीजन सभी बंधनों से मुक्त होकर मोक्षपद प्राप्त करता है ।

धर्मदास बोले - साहिब, अनुरागी मनुष्य के लक्षण और उसकी वास्तविक पहचान क्या है? आपके कहने के अनुसार बिना अनुराग के जीव इस संसार रूपी भवसागर से पार जा नहीं सकता । अतः वह अनुराग कैसा है, यह आप मुझे उदाहरण से समझा कर कहें ।

कबीर साहब बोले - अनुरागी के लक्षण सुनो । जैसे हिरन नाद शब्द को सुनकर दौङता हुआ, उसमें पूर्णतया मगन होकर शिकारी के पास दौङा चला आता है, और पकङा जाता है । उस मनोहारी शब्द की मधुरता में हिरन के मन में अपने पकङे जाने या मरने का भी डर नहीं होता, और उस स्वर में इतना लीन हो जाता है कि शिकारी द्वारा पकङे जाने पर भी अपना सिर कटाते हुये भी नहीं डरता । जिस प्रकार नाद शब्द के प्रेमी हिरन ने शिकारी को अपना सिर दे दिया, ऐसे ही सच्चे प्रेमी को भी पहचानो ।

इसी तरह धर्मदास, जिस प्रकार पतंगा का स्वभाव दीपक से प्रेम करते हुये जलकर मरना होता है । वैसे ही सच्चे भक्त प्रेमी का भाव परमात्मा के लिये होता है ।

धर्मदास, इसके अलावा भी अनुरागी के लक्षण सुनो । जिस प्रकार अपने पति के अगाध प्रेम में डूबी सती नारी अपने पति के साथ जलकर मर जाती है, और जलते समय अपने अंगों को जरा भी मोङती सिकोङती नहीं, और न ही जरा भी विचलित होकर घबराती है ।

सुन्दर घर, धन, परिवार, संसार तथा सखी सहेलियों को विरक्त भाव से छोङकर वह अपने पति की प्रिय सती नारी पति के मृतक शरीर के साथ स्वयं ही उठकर चल देती है । तब उस नारी को सती होने से रोकने के लिये उसके प्रियजन, नाते रिश्तेदार, पङोसी आदि उसके बच्चों को उसके सामने लाकर उसके प्रति उसके मोह, ममता, कर्तव्य आदि का बारबार बोध कराते हुये उसे समझाते हैं कि देख ये तेरा अबोध बालक बहुत कमजोर है, जो तेरे प्यार ममता के बिना ऐसे ही मर जायेगा । अब तो तेरा घर भी सूना हो गया, फ़िर कैसे क्या उपाय होगा ? देख तेरे घर परिवार में बहुत धन संपत्ति है, ऐसे निराश न होकर घर वापस लौट चल ।

परन्तु उन लोगों के बारबार कहने सुनने का उस पर कोई प्रभाव नहीं पङता । उसके ह्रदय में तो केवल अपने प्राणप्रिय पति का अद्वितीय प्रेम ही बसता है, और उसे इसके अतिरिक्त कुछ भी दिखायी नहीं देता ।
सभी ने उसको अलग-अलग अपने अपने ढंग से बहुत समझाया । परन्तु पति प्रेम में आकंठ डूबी वह वियोगिनी सती नारी किसी की कोई बात न समझ सकी ।

और स्थिर अविचल भाव से उत्तर देती है - अपने प्राणों से प्रिय पति के बिछुङने से मैं ऐसी दीवानी हुयी हूँ कि अब मुझे कुछ भी नहीं सुहाता । धन, घर, परिवार आदि की अब मुझे जरा भी कामना नहीं है । इस संसार में चार दिन का ही जीवन जीना है, फ़िर अंत समय में मृत्यु के समय सब यहीं छूट जाता है, तब अकेले ही जाना पङता है ।

इस प्रकार सखी, मैंने सब कुछ अच्छी तरह से सोच समझ कर देखा है, और उसके बाद ही पति के साथ सती होने का निश्चय किया है ।

ऐसा कहकर वह पति प्रेम अनुरागी नारी सती अपने मृतक पति का शरीर हाथों में उठाकर चिता पर चढ़ जाती है, और प्राणप्रिय पति के मृत शरीर को गोद में रखकर परम पिता परमात्मा अंतर्यामी प्रभु का नाम लेते हुये जल जाती है ।

धर्मदास, भक्त अनुरागी के लक्षण इस प्रकार मैंने तुम्हें कहे ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।