शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

अनजाने को स्वर्ग नरक है


शब्द 42

पंडित सोधि कहो समुझाई, जाते आवगमन नसाई ।
अर्थ धर्म औ काम मोक्ष कहु, कवन दिसा बसे भाई?
उत्तर कि दक्षिन पूर्व कि पच्छिम, स्वर्ग पताल कि माहीं ।
बिना गोपाल ठौर नहिं कतहूँ, नरक जात धौ काहीं?
अनजाने को स्वर्ग नरक है, हरि जाने को नाहीं?
जेहि डर को सब लोग डरत हैं, सो डर हमरे नाहीं ।
पाप पुन्य की संका नाहीं, स्वर्ग नरक नहिं जाहीं ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जहाँ का पद है तहाँ तमाहीं?


शब्द 43

पंडित मिथ्या करहु बिचारा । ना वहां सृस्टि ना सिरजनहारा ।
थूल अस्थूल पवन नहिं पावक । रवि ससि धरनि न नीरा ।
ज्योति स्वरूपी काल न तहँवाँ । बचन न आहि सरीरा ।
धर्म कर्म कछु नाहीं उहँवां । न वहाँ बेद बिचारा ।
हरि हर ब्रह्मा नहिं सिव सक्ती । तीर्थउ नाहिं अचारा ।
माय बाप गुरु जहँवां नाहीं । सो दूजा कि अकेला ।
कहैं कबीर जो अबकी बूझै । सोई गुरु हम चेला ।

शब्द 44

बूझहु पंडित करहु बिचारा, पुरुष अहै की नारी?
ब्राह्मन के घर ब्रह्मानी होती, योगी के घर चेली ।
कलिमा पढि पढि भई तुरकिंनी, कलि में रहत अकेली ।
बर नहिं बारि ब्याह नहिं करई, पुत्र जनावनहारी ।
कारे मूँड को एकहु न छांडी, अजहूं आदिकुमारी ।
मैके रहौं जाव नांहि ससूरे, सांई संग न सोवै ।
कहैं कबीर वे जुग जुग जीवै, जाति पांति कुल षोवै ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।