शब्द 7
संतो कहौं तो को पतियाई, झूठ कहत सांच बनि आई ।
लौके रतन अबेध अमोलिक, नहिं गाहक नहिं सांई ।
चिमिकि चिमिकि चिमिकै दृगु, दुहु दिस अर्ब रहा छिरिआई ।
आपै गुरु कृपा कछु कीन्हा, निर्गुन अलष लषाई ।
सहज समाधि उनमुनि जागै, सहज मिलै रघुराई ।
जहँ जहँ देषो जहँ तहँ सोई, मन मानिक बेध्यो हीरा ।
परम तत्व गुरु ही से पावै, कहै उपदेस कबीरा ।
शब्द 8
संतो आवै जाय सो माया ।
है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहूं गया न आया ।
क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना, संषा सुर न संहारा ।
है दयाल द्रोह नहिं वाके, कहहु कौन को मारा ।
वे कर्त न बराह कहाये, धरनि धरै नहिं भारा ।
ई सब काम साहेब के नाहीं, झूठ कहै संसारा ।
षंभ फोरि जो बाहर होई, तेहि पतिजे सब कोई ।
हिरनाकुस नष उदर बिदारे, सो कर्त नहिं होई ।
बावन रूप न बलि को जाचै, जो जाचै सो माया ।
बिना बिबेक सकल जग भरमै, माया जग भर्माया ।
परसुराम क्षत्री नहिं मार्यो, ई छल माया कीन्हा ।
सतगुर भक्ति भेद नहिं जाने, जीवहि मिथ्या दीन्हा ।
सिरजनहार न ब्याही सीता, जल पषान नहिं बन्धा ।
वै रघुनाथ एक कै सुमिरै, जो सुमिरै सो अंधा ।
गोपी ग्वाल न गोकुल आये, कर्ते कंस न मारा ।
है मेहरबान सबन को साहेब, ना जीता ना हारा ।
वै कर्त नहिं बौद्ध कहावै, नहीं असुर संहारा ।
ग्यानहीन कर्त कै भर्मे, माया जग भर्माया ।
वे कर्त नहिं भये कलंकी, नहिं कालिं गहि मारा ।
ई छल बल सब माया कीन्हा, यतिन सतिन सब टारा ।
दस अवतार ईस्वरी माया, कर्त कै जिन पूजा ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, उपजै षपै सो दूजा ।
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