शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

जो खेलै सो देखै बाजी



                            रमैनी 82

सुख के बृक्ष एक जगत उपाया, समुझि न परल विषय कछु माया ।
छौ क्षत्रि पत्री युग चारी, फल दुइ पाप पुन्य अधिकारी ।
स्वाद अनंत कछु बरनि न जाई, करि चरित्र तेहि मांहि समाई ।
नटवर साज साजिए साजी, जो खेलै सो देखै बाजी ।
मोह बापुरा युक्त न देखा, सिव शक्ति विरंचि नहिं पेखा ।

परदे परदे चलि गई, समुझ परी नहिं बानि ।
जो जानै सो बाचि है, होत सकल की हानि ।

                               रमैनी 83

क्षत्री करे क्षत्रिया धर्मा, वाके बढे सवाई कर्मा ।
जिन्ह अवधू गुरु ग्यान लखाया, ताकर मन ताही लै धाया ।
क्षत्री सो जो कुटुंबहि जूझै, पांचों मेटी एक कै बूझै ।
जीवहिं मारि जीव प्रतिपालै, देखत जन्म आपनो घालै ।
हालै करै निसानै घाऊ, जूझि परै तहँ मन मतराऊ ।

मनमथ मरै न जीव ही, जीवहि मरन न होय ।
सुन्य सनेही राम बिनु, चले अपन पौ खोय ।

                                 रमैनी 84

तूं जिय आपन दुखहि संभारा, जेहि दुख ब्यापि रहल संसारा ।
माया मोह बंधा सब लोई, अल्प लाभ मूल गौ खोई ।
मोर तोर में सबै बिगूता, जननी उदर गर्भ मा सूता ।
बहुत खेल खेलहिं बहुरूपा, जन भँवरा अस गए बहूता ।
उपजि बिनसि फिर योनी आवै, सुख को लेस न सपनेहु पावै?
दुख संताप कष्ट बहु पावै, सो न मिला जो जरत बुझावै ।
मोर तोर में जरै जग सारा, धृग स्वारथ झूठा हंकारा ।
झूठी आस रहा जग लागी, इनते भागि बहुरि पुनि आगी ।
जेहि हित कै राखेउ सब लोई, सो सयान बांचा नहिं कोई ।

आपु आप चेतै नहीं, कहौं तो रुसवा होय?
कहैं कबीर जो आपुन जागे, अस्ति निरस्ति न होय ।
      
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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।