शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

नहीं यसोदा गोद खिलाये


                           रमैनी 74

तहिया गुप्त स्थूल न काया, ताके सोग न ताके माया ।
कमल पत्र तरंग एक माहीं, संगहि रहै लिप्त पै नाहीं?
आसा ओस अंडमा रहई, अग्नि त अंड न कोई कहई?
निराधार आधार ले जानी, राम नाम ले उचरी बानी ।
धर्म कहै सब पानी अहई, जाती के मन बानी रहई ।
ढोर पतंग सरै घरियारा, तेहि पानी सब करै अचारा ।
फंद छोरि जो बाहर होई, बहुरि पंथ ना जोहै सोई ।

भर्मक बांध लई जगत, कोइ न करै विचार ।
हरि की भक्ति जाने बिना, भव बूडि मुवा संसार ।

                            रमैनी 75

तेहि साहब के लागहु साथा, दुइ दुख मेटि के होहु सनाथा ।
दसरथ कुल अवतरि नहिं आये, नहीं यसोदा गोद खिलाये ।
पृथ्वी रवन घवन नहिं करिया, पैठि पताल नही बलि छलिया ।
नहिं बलिराज सो माडल रारी, नहिं हिरनाकुस बधल पछारी ।
ब्राह रूप धरनी नहिं धरिया, छत्री मारि निछत्री न करिया ।
नहिं गोबर्धन कर गहि धरिया, नहिं ग्वाल संग बन बन फिरिया ।
गंडक शालिग्राम न कूला, मच्छ कच्छ होय नहिं जल डोला ।
द्वारावती सरीर न छाँडा, लै जगन्नाथ पिंड नहिं गाडा ।

कहहिं कबीर पुकारि के, वैपंथै मत भूल ।
जेहि राखेउ अनुमान करि, सो थूल नहिं अस्थूल ।

                           रमैनी 76

माया मोह सकल संसारा, यहै विचार ना काहु बिचारा?
माया मोह कठिन है फन्दा, करे बिबेक सोई जन बंदा ।
राम नाम लै बेरा धारा, सो तो लै संसारहि पारा ।

राम नाम अति दुर्लभा, औरै ते नहिं काम ।
आदि अंत औ युगहिं युग, रामहिं ते संग्राम ।

                          रमैनी 77

एकै काल सकल संसारा, एक नाम है जगत पियारा?
तिया पुरुष कछु कथो न जाई, सर्व रूप जग रहा समाई?
रूप निरूप जाय नहिं बोली, हलका गरुवा जाय न तौली ।
भूख न तृषा धूप नहिं छाँहीं, दुख सुख रहित रहै तेहि मांहीं ।

अपरमपार रूप बहुरंगी, रूप निरूप न ताहि ।
बहुत ध्यान कै खोजिया, नहिं तेहि संख्यां आहि ।

1 टिप्पणी:

Akki ने कहा…

राजीव जी क्या आप के पास यह भजन ऑडियो के रूप में उपलब्ध है ??? यदि हो तो कृपया उसे मेरे email id akhil_iips@rediffmail.com पर भेज देवे तो बड़ी मेहरबानी होगी !!!

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।