बुधवार, अप्रैल 07, 2010

कहहिं कबीर खोजै असमाना


                         रमैनी 32

अंध सो दर्पन वेद पुराना, दर्बी कहा महारस जाना ।
जस खर चंदन लादेउ भारा, परिमल बास न जान गवाँरा?
कहहिं कबीर खोजै असमाना, सो न मिला जो जाय अभिमाना ।

                         रमैनी 33

वेद की पुत्री स्मृति भाई, सो जेंवरि कर लेतहि आई ।
आपुहि बरी आपु गर बंधा, झूठा मोह काल को फंदा ।
बंधवत बंधन छोरि नहि जाई, विषय सरूप भूलि दुनियाई ।
हमरे दिखत सकल जग लूटा, दास कबीर राम कहि छूटा ।

रामहि राम पुकारते, जिभ्या परिगौ रोस ।
सूधा जल पीये नहिं, खोदि पिअन के हौस ।

                               रमैनी 34

पढि पढि पंडित करि चतुराई, जिन मुक्ती मोहि कहु समुझाई ।
कहँ बसे पुरुष कौन सो गांउ, सो पंडित समुझावहु नाउं ।
चारि वेद ब्रह्मै निज ठाना, मुक्ति का मर्म उनहु नहिं जाना ।
दान पुन्य उन बहुत बखाना, अपने मरन कि खबरि न जाना ।
एक नाम है अगम गंभीरा, तहवाँ अस्थिर दास कबीरा ।

चिऊंटी जहां न चढि सकै । राई नहिं ठहराय ।
आवागमन कि गम नहीं । तहँ सकलौ जग जाय ।

                         रमैनी 35

पंडित भूले पढि गुन बेदा, आपु अपनपौ जानु न भेदा ।
संध्या सुमिरन औ षट कर्मा, ई बहु रूप करै अस धर्मा ।
गायत्री युग चारि पढाई, पूछहु जाय मुक्ति किन पाई?
और के छुये लेत हौ छींचा, तुमसे कहहु कौन है नीचा ।
ई गुन गर्व करो अधिकाई, अति कै गर्व न होय भलाई ।
जासु नाम है गर्व प्रहारी, सो कस गर्वहि सकै सहारी ।

कुल मरजादा खोय के, खोजिन पद निरबान ।
अंकुर बीज नसाय के, भये विदेही थान ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।