शब्द 11
संतो पांडे निपुन कसाई ।
बकरा मारि भैंसा पर घावे, दिल में दर्द न आई ।
करि असनान तिलक दै बैठे, विधि से देवी पुजाई ।
आतम मारि पलक में बिनसे, रुधिर कि नदी बहाई ।
अति पुनीत ऊँचे कुल कहिये, सभा मांहि अधिकाई ।
इन्हते दीक्षा सब कोई मांगै, हंसि आवै मोहिं भाई ।
पाप कटन को कथा सुनावै, कर्म करावै नीचा ।
बूडत दोउ परस्पर देषा, यम लाये हैं षींचा ।
गाय बधे तेहि तुरका कहिये, इन्हते वै क्या छोटे ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, कलि में ब्राह्मन षोटे ।
शब्द 12
संतो मते मातु जन रंगी ।
पियत पियाला प्रेम सुधारस, मतवाले सतरंगी ।
अर्ध ऊर्ध ले भट्ठी रोपिनि, लेत कसारस गारा ।
मूंदे मदन काटि कर्म कस्मल, संतन चुवत अगारी । कस्मल ?
गोरषदत्त बसिस्ट व्यास कवि, नारद सुक मुनि जोरी ।
बैठे सभा संभु सनकादिक, तहँ फिरे अधर कटोरी ।
अंबरीष औ याग्य जनक जड, सेष सहस्र मुष फाना ।
कहलों गनों अनंत कोटि लों, अमहल महल दिवाना ।
ध्रुव प्रहलाद बिभीषन माते, माती सेवरी नारी ।
निर्गुन ब्रह्म मते बृन्दावन, अजहूँ लागु षुमारी ।
सुर नर मुनि तिय पीर औलिया, जिन रे पिया तिन्ह जाना ।
कहहिं कबीर गूंगे का शक्कर, क्यों कर कहै बषाना ।
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