शब्द 48
पंडित देषहु हृदय बिचारी, को पुरुषा को नारी?
सहज समाना घट घट बोलै, वाको चरित अनूपा ।
वाको नाम काह कहि लीजै, वाके बरन न रूपा?
तैं मैं क्या करसि नर बौरे, क्या तेरा क्या मेरा ।
राम षुदाय सक्ति सिव एकै, कहुँ धौ काहि निबेरा?
बेद पुरान किताब कुराना, नाना भाँति बषाना ।
हिंदू तुरुक जैनी औ योगी, ये कल काहु न जाना ।
छौ दरसन में जो परवाना, तासु नाम मनमाना ।
कहैं कबीर हम हीं पै बौरे, ये सब षलक समाना ।
शब्द 49
बूझ बूझ पंडित पद निर्बान, सांझ परे कहँवा बसे भान ।
ऊँच नीच पर्बत ढेला न ईंट, बिनु गायन तहँवा उठे गीत ।
ओस न प्यास मंदिर नहिं जहँवां, सहस्रौ धेनु दुहावै तहवाँ ।
नित्त अमावस नित संक्रांत, नित दिन नव ग्रह बैठे पाँत ।
मैं तोहि पूछौँ पंडित जना, हृदया ग्रहन लागु केहि षना ।
कहैं कबीर इतनो नहिं जान, कौन सब्द गुरु लागा कान ।
शब्द 50
बूझ बूझ पंडित बिरवा न होय । आधा बसे पुरुष आधा बसे जोय ।
बिरवा एक सकल संसारा, स्वर्ग सीस जर गई पताला ।
बारह पषुरी चौबिस पाता, घन बरोह लागे चहुं पासा ।
फूलै न फलै वाकी है बानी, रैन दिवस बिकार चुवै पानी ।
कहैं कबीर कछु अछलो न तहिया । हरि बिरवा प्रतिपाली न जहिया ।
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