शब्द 3
संतो घर में झगरा भारी ।
राति दिवस मिलि उठि उठि लागै, पांच ढोटा एक नारी ।
न्यारो न्यारो भोजन चाहै, पांचों अधिक सवादी ।
कोई काहु को हटा न मानै, आपुहि आप मुरादी ।
दुर्मति केर दोहागिनी मेटै, ढोटेहि चाप चपेरे ।
कहैं कबीर सोई जन मेरा, जो घर की रारि निबेरे ।
शब्द 4
संतो देषत जग बौराना ।
सांच कहों तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
नेमी देषा धरमी देषा, प्रात करै असनाना ।
आतम मारि पषानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ग्याना ।
बहुतक देषा पीर औलिया, पढै किताब कुराना ।
आसन मारि डिंभ घर बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीतर पाथर पूजन लागै, तीरथ गर्भ भुलाना ।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना ।
साषी सब्दहि गावत भूले, आतम षबरि न जाना ।
हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना ।
आपस में दोऊ लरि मूये, मर्म न काहू जाना ।
घर घर मंतर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना ।
गुरु के सहित सिष्य सब बूडे, अन्त काल पछिताना ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, ई सब गर्भ भुलाना ।
केतिक कहों कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना ।
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