शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

माया महाठगिनि हम जानी


शब्द 57

ना हरि भजसि न आदति छूटी ।
सब्दहि समुझि सुधारत नाहीं, आँधर भये हियेहु की फूटी ।
पानी महँ पषान को रेषा, ठोंकत उठै भभूका ।
सहस्र घडा नित उठि जल ढारै, फिर सूषे का सूषा ।
सेतहि सेत सेत अंग भौ, सेन बाढी अधिकाई ।
जो सनिपात रोगिया माटै, सो साधन सिध पाई ।
अनहद कहत जग बिनसे, अनहद सृस्टि समानी ।
निकट पयाना जमपुर धावै, बोलै एकै बानी ।
सतगुरु मिलै बहुत सुष लहिये, सतगुरु सब्द सुधारै ।
कहैं कबीर ते सदा सुषी हैं, जो यह पदहि बिचारै ।

शब्द 58

नरहरि लागी दव बिनु ईंधन, मिलै न बुझावनहारा ।
मैं जानो तोही से ब्यापै, जरत सकल संसारा ।
पानी माहिँ अग्नि को अंकुर, जरत बुझावै पानी ।
एक न जरै जरै नव नारी, जुक्ति न काहू जानी ।
सहर जरै पहरु सुष सोवै, कहे कुसल घर मेरा ।
पुरिया जरे वस्तु निज उबरे, बिकल राम रंग तेरा ।
कुबजा पुरुष गले एक लागा, पूजि न मन के सरधा ।
करत बिचार जन्म जन्म गौ षीसै, ई तन रहत असाधा ।
जानि बूझि जो कपट करत है, तेहि अस मंद न कोई ।
कहैं कबीर तेहि मूढ को, भला कवन बिधि होई ।

शब्द 59

माया महाठगिनि हम जानी ।
तिर्गुन फाँस लिये कर डोले बोलै मधुरी बानी ।
केसव के कमला हो बैठी सिव के भवन भवानी ।
पंडा के मूरति हो बैठी तीरथहू में पानी ।
योगी के योगिन हो बैठी राजा के घर रानी ।
काहू के हीरा हो बैठी काहु के कौडी कानी ।
भक्तों के भक्तिनि हो बैठी ब्रह्मा के ब्रह्मानी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो ई सब अकथ कहानी ।

कोई टिप्पणी नहीं:

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।