शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

पंडित देषहु मन में जानी


शब्द 39

ऐसो हरि सो जगत लडतु है । पांडुर कहीं गरुड धरतु है ।
मूस बिलाई कैसन हेतू । जंबुक करै केहरि सो षेतू ।
अचरज चक देषो संसारा । सोनहा षेत कुंजर असवारा ।
कहैं कबीर सुनो संतो भाई । इहै संधि काह बिरलै पाई?

शब्द 40

पंडित बाद बदै सो झूठा ।
राम कहे जगत गति पावै । षांड कहे मुष मीठा ।
पावक कहे पांव जो डाहै । जल कहे तृषा बुझाई ।
भोजन कहै भूष जो भाजै । तो दुनिया तर जाई ।
नर के संग सुवा हरि बोलै । हरि प्रताप नहिं जानै ।
जो कबहीं उडि जाय जंगल को । तौ हरि सुरति न आनै ।
बिनु देषे बिनु दरस परस बिनु । नाम लिये का होई ।
धन के कहे धनिक जो होवै । निर्धन रहै न कोई ।
सांची प्रीति विषय माया सो । हरि भक्तन को हांसी ।
कहैं कबीर एक राम भजे बिनु । बांधे जमपुर जासी ।

शब्द 41

पंडित देषहु मन में जानी ।
कहु धौं छूति कहाँ से उपजी, तबहिं छूति तुम मानी ।
नादे बिंदु रुधिर के संगै, घरही में घट सपचै ।
अस्ट कमल होय पुहुमी आया, छूति कहाँ से उपजै?
लष चौरासी बहुत बासना, सो सब सरि भौ माटी ।
एकहि पाट सकल बैठाये, छूति लेत धौ काटी ।
छूतिहि जेवन छूतहि अचवन, छूतिहि जग उपजाया ।
कहैं कबीर ते छूति विविर्जित, जाके संग न माया ।


कोई टिप्पणी नहीं:

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।