शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

बांझ के कोष पुत्र अवतरिया


शब्द 15
रामुरा चली बिनाबन माँ, हो घर छोडे जात जुलाहो ।
गज नौ गज दस गज उन, इसकी पुरिया एक तनाई ।
सात सूत नौ गाढ बहत्तर, पाट लागु अधिकाई ।
ता पट तूलन गज न अमाई, पैसन सेर अढाई ।
तामें घटै बढै रतियो नहिं, करकच करै घरहाई ।
नित उठि बाढि षसम सो बरबस, तापर लागु तिहाई ।
भींगी पुरिया काम न आवै, जोलहा चला रिसाई ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, जिन यह सृष्टि बनाई ।
छाँड पसार राम भजु बौरे, भव सागर कठिनाई ।

शब्द 16
रामुरा झिन झिन जंतर बाजे, कर चरन बिहूना नाचै ।
कर बिनु बाजै सुनै स्रवन बिनु, स्रवने स्रोता साई ।
पाटन सुजन सभा बिनु अवसर, बूझहु मुनि जन लाई ।
इन्द्री बिनु भोग स्वाद जिभ्या बिनु, अक्षय पिंड बहूना ।
जागत चोर मंदिर तहँ मूसै, षसम अछत घर सूना ।
बीज बिनु अंकुर पेड बिनु तरवर, बिनु फूले फल फरिया ।
बांझ के कोष पुत्र अवतरिया, बिनु पग तरुवर चढिया ।
मसी बिनु द्वात कलम बिनु कागद, बिनु अक्षर सुधि होई । दवात
सुधि बिनु सहज ग्यान बिनु ग्याता, कहै कबीर जन सोई ।

शब्द 17
रामहिं गावै औरहि समुझावै, हरि जानै बिनु विकल फिरै ।
जेहि मुष बेद गायत्री उचरै, ताके बचन संसार तरै ।
जाके पांव जगत उठि लागे, सो ब्राह्मन जीव बध करै ।
अपने ऊंच नीच घर भोजन, धीन कर्म करि उदर भरै ।
ग्रहन अमावस ढुकि ढुकि माँगै, कर दीपक लिये कूप परै ।
एकादसी बरत नहिं जानै, भूत प्रेम हठि हृदय धरै ।
तजि कपूर गांठि बिष बांधै, ग्यान गवाय के मुग्ध फिरै ।
छीजै साह चोर प्रतिपालै, संत जना की कूटि करै ।
कहैं कबीर जिभ्या के लंपट, यहि बिधि प्रानी नरक परै ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।