रमैनी 1
अंतर ज्योति सब्द यक नारी, हरि ब्रह्मा ताके
त्रिपुरारी ।
ते तिरिये भग लिंग अंनता, तेउ न जानै आदि न अंता ।
बाखरि एक विधातै कीन्हा, चौदह ठहर पाटि सो लीन्हा
।
हरि हर ब्रह्मा महंतो नाउं, तिन पुनि तीनि बसाबल
गाऊॅ ।
तिन पुनि रचल खंड ब्रह्मांडा, छौ दर्शन छानव पाखंडा ।
पेटहि काहु न वेद पढ़ाया, सुनति कराय तुरक नहिं
आया ।
नारी मोचित गर्भ प्रसूति? स्वांग धरै बहुतै करतूती
।
तहिया हम तुम एकै लोहू, एकै प्राण बियापै मोहू ।
एकै जनी जना संसारा? कौन ज्ञान ते भयो निनारा?
भौ बालक भगद्वारे आया? भग भोगे ते पुरुष कहाया
।
अविगति की गति काहु न जानी, एक जीभ कत कहौं बखानी ।
जो मुख होइ जीभ दस लाखा, तो को आय महंतो भाखा ।
कहिह कबीर पुकारि कै, ई लेऊ व्यवहार ।
राम नाम जाने बिना, बूडि मुवा संसार ।
रमैनी 2
जीव रूप एक अंतर बासा, अन्तर ज्योति कीन्ह
प्रकासा ।
इच्छा रूप नारि अवतरई, तासु नाम गायत्री धरई ।
तेहि नारी के पुत्र तीन भयऊ, ब्रह्मा बिस्नू महेस्वर
नांउ धरऊ ।
फ़िर ब्रह्मा पूछल महतारी, को तोरि पुरुष केकरि तुम
नारी ।
तुम हम हम तुम और न कोई, तुमहि पुरुष हम ही तब
जोई ।
बाप पूत की एकै नारी, एकै माय बिआय ।
ऐसा पूत सपूत न देखा, जो बापै चीन्हे धाय ।
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