रविवार, मार्च 28, 2010

एकै जनी जना संसारा?


                                रमैनी 1            

अंतर ज्योति सब्द यक नारी, हरि ब्रह्मा ताके त्रिपुरारी ।
ते तिरिये भग लिंग अंनता, तेउ न जानै आदि न अंता ।
बाखरि एक विधातै कीन्हा, चौदह ठहर पाटि सो लीन्हा ।
हरि हर ब्रह्मा महंतो नाउं, तिन पुनि तीनि बसाबल गाऊॅ ।
तिन पुनि रचल खंड ब्रह्मांडा, छौ दर्शन छानव पाखंडा ।
पेटहि काहु न वेद पढ़ाया, सुनति कराय तुरक नहिं आया ।
नारी मोचित गर्भ प्रसूति? स्वांग धरै बहुतै करतूती ।
तहिया हम तुम एकै लोहू, एकै प्राण बियापै मोहू ।
एकै जनी जना संसारा? कौन ज्ञान ते भयो निनारा?
भौ बालक भगद्वारे आया? भग भोगे ते पुरुष कहाया ।
अविगति की गति काहु न जानी, एक जीभ कत कहौं बखानी ।
जो मुख होइ जीभ दस लाखा, तो को आय महंतो भाखा ।

कहिह कबीर पुकारि कै, ई लेऊ व्यवहार ।
राम नाम जाने बिना, बूडि मुवा संसार ।
                           
                              रमैनी 2

जीव रूप एक अंतर बासा, अन्तर ज्योति कीन्ह प्रकासा ।
इच्छा रूप नारि अवतरई, तासु नाम गायत्री धरई ।
तेहि नारी के पुत्र तीन भयऊ, ब्रह्मा बिस्नू महेस्वर नांउ धरऊ ।
फ़िर ब्रह्मा पूछल महतारी, को तोरि पुरुष केकरि तुम नारी ।
तुम हम हम तुम और न कोई, तुमहि पुरुष हम ही तब जोई ।

बाप पूत की एकै नारी, एकै माय बिआय ।
ऐसा पूत सपूत न देखा, जो बापै चीन्हे धाय ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।