रविवार, मार्च 28, 2010

तीन लोक में लागि ठगौरी


                        रमैनी 10

लाही लै पिपराही बही, करगी आवत काहु न कही ।
आई करगी भो अजगूता, जन्म जन्म यम पहिरे बूता ।
बूता पहिर यम कीन्ह समाना, तीन लोक में कीन्ह पयाना ।
बाँधे ब्रह्मा बिस्नु महेसू, सुर नर मुनि औ बांधि गनेसू ।
बाँधे पवन पाव नभ नीरू, चाँद सूर्य बाँधे दोउ बीरू ।
साँच मंत्र बाँधे सब झारी, अमृत वस्तु न जानै नारी?

अमृत वस्तु नहिं जानै, मगन भये सभ लोय ।
कहहिं कबीर कामों नहीं, जीवहि मरन न होय ।

                           रमैनी 11

आँधरी गुष्टि सृष्टि भै बौरी, तीन लोक में लागि ठगौरी?
ब्रह्महिं ठग्यो नाग संहारी, देवन सहित ठग्यो त्रिपुरारी ।
राज ठगौरी विष्णुहि परी, चौदह भुवन केर चौधरी ।
आदि अन्त जेहि काहु न जानी, ताको डर तुम काहे मानी?
वै उतंग तुम जाति पतंगा, यम घर किएउ जीव के संगा ।
नीम कीट जस नीम पिआरा, विष को अमृत कहै गंवारा ।
विष के संग कवन गुन होई, किंचित लाभ मूल गौ खोई ।
विष अमृत गौ एकै सानी, जिन जाना तिन विस कै मानी ।
कहाँ भये नर सुध बेसूधा, बिन परिचय जग बूड न बूधा?
मति के हीन कौन गुण कहई, लालच लागे आसा रहई ।

मुवा अहे मरि जाहुगे, मुये कि बाजी ढोल ।
स्वप्न सनेही जग भया, सहिदानी रहिगा बोल ।

                              रमैनी 12

माटी के कोट पखान के ताला, सोई बन सोई रखने वाला ।
सो बन देखत जीव डेराना, ब्राह्मन वैष्नव एकहि जाना ।
ज्यों किसान कीसानी करई, उपजे खेत बीज नहिं परई?
छाडि देव नर झेलिक झेला, बूडे दोऊ गुरू औ चेला?
तीसर बूडे पारथ भाई, जिन बन दीन्हों दहा लगाई ।
भूकि भूकि कूकुर मरि गयऊ, काज न एक स्यार से भयऊ?

मूस बिलाई एक संग, कहु कैसे रहि जाय ।
अचरज एक देखहु हो संतो, हस्ती सिंहहि खाय ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।