रमैनी 10
लाही लै पिपराही बही, करगी आवत काहु न कही ।
आई करगी भो अजगूता, जन्म जन्म यम पहिरे बूता
।
बूता पहिर यम कीन्ह समाना, तीन लोक में कीन्ह पयाना
।
बाँधे ब्रह्मा बिस्नु महेसू, सुर नर मुनि औ बांधि गनेसू
।
बाँधे पवन पाव नभ नीरू, चाँद सूर्य बाँधे दोउ बीरू
।
साँच मंत्र बाँधे सब झारी, अमृत वस्तु न जानै नारी?
अमृत वस्तु नहिं जानै, मगन भये सभ लोय ।
कहहिं कबीर कामों नहीं, जीवहि मरन न होय ।
रमैनी 11
आँधरी गुष्टि सृष्टि भै बौरी, तीन लोक में लागि ठगौरी?
ब्रह्महिं ठग्यो नाग संहारी, देवन सहित ठग्यो त्रिपुरारी
।
राज ठगौरी विष्णुहि परी, चौदह भुवन केर चौधरी ।
आदि अन्त जेहि काहु न जानी, ताको डर तुम काहे मानी?
वै उतंग तुम जाति पतंगा, यम घर किएउ जीव के संगा ।
नीम कीट जस नीम पिआरा, विष को अमृत कहै गंवारा ।
विष के संग कवन गुन होई, किंचित लाभ मूल गौ खोई ।
विष अमृत गौ एकै सानी, जिन जाना तिन विस कै मानी
।
कहाँ भये नर सुध बेसूधा, बिन परिचय जग बूड न बूधा?
मति के हीन कौन गुण कहई, लालच लागे आसा रहई ।
मुवा अहे मरि जाहुगे, मुये कि बाजी ढोल ।
स्वप्न सनेही जग भया, सहिदानी रहिगा बोल ।
रमैनी 12
माटी के कोट पखान के ताला, सोई बन सोई रखने वाला ।
सो बन देखत जीव डेराना, ब्राह्मन वैष्नव एकहि जाना
।
ज्यों किसान कीसानी करई, उपजे खेत बीज नहिं परई?
छाडि देव नर झेलिक झेला, बूडे दोऊ गुरू औ चेला?
तीसर बूडे पारथ भाई, जिन बन दीन्हों दहा लगाई
।
भूकि भूकि कूकुर मरि गयऊ, काज न एक स्यार से भयऊ?
मूस बिलाई एक संग, कहु कैसे रहि जाय ।
अचरज एक देखहु हो संतो, हस्ती सिंहहि खाय ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें