शनिवार, मई 01, 2010

अपुनपौ आपही बिसरो


शब्द 75

ऐसो भर्म बिगुरचनि भारी ।
बेद किताब दीन औ दोजष को पुरुषा को नारी ।
माटी का घट साज बनाया नादे बिन्दु समाना ।
घट बिनसे क्या नाम धरोगे अहमक षोज भुलाना ।
एकै त्वचा हाड मल मूत्रा एक रुधिर एक गूदा ।
एक बूंद से सृष्ठि रचो है ब्राह्मन को सूदा ।
रजोगुन ब्रह्मा तमोगुन संकर सतोगुनी हरि होई ।
कहैं कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुर्क न कोई ।

शब्द 76

अपुनपौ आपही बिसरो ।
जैसे स्वान कांच मंदिर में भ्रमित भूंकि मरो ।
ज्यों केहरि बपु निरषि कूपजल प्रतिमा देषि परो ।
वैसहि मदगज फटिक सिला पर दसनन आनि अरो ।
मर्कट मूठी स्वाद न बिहुरै, घर घर रटत फिरो ।
कहैं कबीर ललनी के सुवना, तोहि कवने पकरो ।

शब्द 77

आपन आस किये बहुतेरा, काहु न मर्म पावल हरि केरा ।
इंद्री कहां करै विस्राम, सो कहँ गये जे कहते राम ।
सो कहँ गये जो होत सयाना, होय मृतक वह पदहि समाना ।
रामानँद राम रस माते, कहैं कबिर हम कहि कहि थाके ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।