अथ पहिली चाचर
खेलति माया मोहनी, जेर कियो संसार ।
कटि केहरि गज गामिनी, संशय कियो श्रंगार
॥
रचै रंग की चूनरी, सुन्दर पहिरै आय ।
शोभा अदभुत रूप की, महिमा वरणि न जाय ॥
चन्द्रवदनि मृग लोचनी, बिन्दुक दियो उघालि ।
यती सती सब मोहिया, गज गति वाकी चाल ॥
नारद को मुख माङि कै, लीन्हो बदन छिपाय ।
गर्व गहेली गर्व ते, उलटि चली मुसकाय ॥
शिव अरु ब्रह्मा दौरि कै, दोनों पकरे जाय ।
फ़गुवा लीन छिनाय कै, बहुरि दियो छिटकाय ॥
अनहद धुन बाजा बजै, श्रवण सुनत भो चाव ।
खेलनिहारी खेलिहै, जैसी वाकी दाव ॥
आगे ढाल अज्ञान की, टारे टरत न पांव ।
खेलनिहारी खेलिहै, बहुरि न ऐसी दाव ॥
सुर नर मुनि भू देवता, गोरख दत्ता व्यास ।
सनक सनन्दन हारिया, और कि केतिक आस ॥
छिलकत थोथे प्रेम सों, धरि पिचकारी गात ।
करि लीन्हो वश आपने, फ़िरि फ़िरि चितवत जात ॥
ज्ञान गाङ लै रोपिया, त्रिगुण लिये है हाथ ।
शिव संग ब्रह्मा लीनिया, और लिये सब साथ ॥
एक और सुर मुनि खङे, एक अकेली आप ।
दृष्टि परे छोङे नहीं, करि लिय एकै छाप ॥
जेते थे तेते लियो, घूंघट माहँ समाय ।
कज्जल वाके रेख हैं, अदग न कोई जाय ॥
इन्द्र कृष्ण द्वारे खङे, लोचन निज ललचाय ।
कहि कबीर ते ऊबरे, जाहि न मोह समाय ॥
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