सोमवार, मई 17, 2010

चार चोर चोरी चले


मानुस जन्म नर पाय के । चूके अबकी घात ।
जाय परे भव चक्र में । सहै घनेरी लात ।

रत्न रत्न की यत्न करु । माटी का सिंगार ।
आया कबीरा फिंगरिया । झूठा है संसार ।

मानुस जन्म दुर्लभ अहै । बहुरि न दूजी बार ।
पका फल जो गिर परा । बहुरि न लागै डार ।

बाँह मरोरे जात हो । सोवत लिये जगाय ।
कहैं कबीर पुकारि कै । पैडे होके जाए ।

साषि पुलंदर ढहि परे । बिबि अक्षर जुग चार ।
रसना रम्भन होत है । करि न सकै निरुवार ।

बेडा बांधिन सर्प का । भवसागर के मांह ।
जो छोडै तो बूडई । गहै डसिहै बांह ।

हाथ कटोरा षोआ भरा । मग जोहत दिन जाए ।
कबिरा उतरा चित्त से । छाँछ दियो नहिं जाए ।

एक कहौं तो है नहीं । दुइ कहौं तो गारि ।
है जैसा तैसा रहै । कहैं कबीर बिचारि ।

अमृत केरी पुरिया । बहु बिधि दीन्हा छोर ।
आप सरीषा जो मिलै । ताहि पिआवहु घोर ।

अमृत केरी मोटरी । सिर से धरी उतार ।
जाहिं कहौं मैं एक है । मोहिं कहै दुइ चार ?

जाको मुनिवर तप करै । बेद थके गुनाए ।
सोई देउ सिषायना । कोई नहीं पतियाय ।

एक ते हुआ अनन्त । अनन्त ते एकहि आए ।
एक ते परिचय भई । एकै माहि अनन्त समाए ।

एक सब्द गुरुदेव का । ताका अनन्त बिचार ।
थाके मुनिवर पंडिता । बेद न पावै पार ।

राऊर के पिछवारे । गावै चारिउ सैंन ।
जीव परा बहु लूट में ।  ना कछु लेन ना देन ।

चौगोडा के देषते । ब्याधा भागा जाए ।
अचरज एक देषो हो संतो । मुवा काल को षाय ।

तीन लोक चोरी भई । सबका सरबस लीन्ह ।
बिना मूड का चोरवा । परा न काहू चीन्ह ।

चक्की चलती देषि के । नयनन आया रोए ।
दो पट भीतर आय के । साबुत गया न कोए ।

चार चोर चोरी चले । पगु की पनही उतार ।
चारो दर थूनी हनी । पंडित करहु बिचार ।

बलिहारी वह दूध की । जामैं निकसै घीव ।
आधी साषी कबीर की । चार बेद का जीव ।

बलिहारी तेहि पुरुस की । परचित परषनहार ।
साँई दीन्हो षाँड की । षारी बूझ गँवार ।

बिस के बिषे घर किया । रहा सर्प लपटाय ।
ताते जियरे डर भया । जागत रैन बिहाय ।

जोई घर है सर्प का । सो घर साध न होय ।
सकल संपदा लय गई । बिसभर लागा सोए ।

घुंघुची भर के बोइये । उपजै पसेरी आठ ।
डेरा परा काल का । सांझ सकारे जात ।

मन भर के बोइये । घुंघुची भरना होए ।
कहा हमार मानै नहीं । अंतहु चला बिगोए ।

आपा तजै हरि भजै । नष सिष तजै बिकार ।
सब जीवन से निरभे रहे । साध मता हैं सार ।

पछा पछी के कारने । सब जग रहा भुलान ।
निरपक्ष होके हरि भजै । सोई संत सुजान ।

बडे ते गये बडापने । रोम रोम हंकार ।
सतगुरु की परिचय बिना । चारो बरन चमार ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।