गुरुवार, जून 17, 2010

अंधा मति का हीन


माया तजे ते क्या भया । जो मान तजो नहिं जाए ।
जेहि माने मुनिवर ठगे । मान सभन को षाए ।

माया के झक जग जरै । कनक कामिनी लाग ।
कहैं कबीर कस बांचिहो । रुई लपेटी आग ।

माया जग साँपिनि भई । विस ले पैठि पतार ।
सब जग फंदे फंदिया । चले कबीरू काछ ।

साँप बिछू का मंत्र है । माहुर झारा जाए ।
विकट नारि के पाले परा । काटि करेजा षाए ।

तामस केरी तीन गुन । भैंर लेइ तहँ बास ।
एकै डार तीन फल । भांटा ऊष कपास ।

मन मतंग गैजर हनै । मनसा भई सचान ।
जंत्र मंत्र मानै नहीं । लगै सो उडि उडि षान ।

मन गजेन्द्र मानै नहीं । लगै सुरति के साथ ।
दीन महावत क्या करै । जो अंकुस नहीं हाथ ।

माया है चूहडी । औ चूहडे की जोए ।
बाप पूत अरुझाय के । संग न काहु के होए ।

कनक कामिनी देषि के । तू मति भुलहु सुरंग ।
मिलन बिछरन दोउ हेलरा । जस केचुलि तजत भुजंग ।

माया केरी बस परै । ब्रह्म बिस्नु महेस ।
नारद सारद सनक सनंदन । गौरी पुत्र गनेस ।

पीपरि एक महागिर्भनी । ताकर मर्म काइ नहिं जानि ।
डार लंब फल कोइ न पाय । षसम अछत बहु पीपरि जाए ।

साहु से भौ चोरबा । चोरहि से भौ हित्त ।
तब जानहुगे जीयरा । जब मार परैगी तुझ्झ ।

ताकी पूरी क्यों परे । गुरु न लषाई बाट ।
ताके बेडा बूडि है । फिर फिर औघट घाट ।

जाना नहीं बूझा नहीं । समुझि किया नहि गौन ।
अंधे को अन्धा मिला । राह बतावै कौन ।

जाको गुरु है आँधरा । चेला काह कराए ।
अंध अंधा पेलिया । दूनो कूप पराय ।

लोगों केरी अथाइया । मत कोइ पैठो धाए ।
एकै षेत चरत है । बाघ गदहा गाए ।

चार मास घन बरसिया । अति अपूर बलनीर ।
परिहे जडवत बषतरी । चुभै न एकौ तीर ।

गुरु की भेली जिव डरै । काया सीचनहार ।
कुमति कमाई मन बसै । लाग जुबा की लार ।

तन संसय मन सोनहा । काल अहेरी नित्त ।
एकै डांग बसेरवा । कुसल पुछो का मित्त ।

साहु चोर चीन्है नहीं । अंधा मति का हीन ।
पारष बिना बिनास है । करि विचार रहु मीन ।

गुरु सिकलीगर कीजिए । मनहि मसकला देए ।
सब्द छोलना छोलि के । चित दर्पन करि लेए ।

मुरुष के सिषलावते । ग्यान गाँठ का जाए ।
कोइला होइ न ऊजरा । सौ मन साबुन लाए ।

मूढ क्र्मिया मानवा । नष सिर पाषरि आहि ।
बाहनहारा क्या करे । बान न लागे ताहि ।

सेमर केरा सूवना छिवले बैठो जाए ।
चोंच संवारे सिर धुनै ई उस ही को भाए ।

सेमर सुवना बेगि तजु घनी बिगुरचा पाँष ।
ऐसा सेमर जो सोवै हृदया नाहीं आँष ।

सेमर सुवना सेइया दुइ ढेढी की आस ।
ढेढी फूरि चटाक दे सुवना चला निरास ।


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।