शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

कबिरा ज्योति समाना


शब्द 63

मैं कासे कहौं को सुनै पतिआय । पुलवा के छुवत भँवर मबपरजाय ।
गगन मंदिल बिच फूल एक फूला । तर भौ डार उपर भो मूला ।
जोतिये न बोइये सिचिये न सोई । डार पात बिनु एक होई ।
फुल भल फुलल मलिनि भल गांथल । फुलवा बिनसिगौ भँवर निरासल ।
कहैं कबीर सुनों संतो भाई । पंडित जन फुल रहल लोभाई ।

शब्द 64

जोलहा बीनहु हो हरि नामा, जाके सुर नर मुनि धरैं ध्याना ।
ताना तनै को अहुठा लीन्हा, चरषी चारी बेदा ।
सर षूटी एक राम नरायन, पूरन प्रगटे कामा ।
भवसागर एक कठवत कीन्हा । तामें मांडी साना?
माडी का तन माडि रहो है । माडी बिरलै जाना?
चांद सूर्य दुइ गोडा कीन्हा । माँझदीप कियो माँझा?
त्रिभुवन नाथ जो माँजन लागे, स्याम मरोरिया दीन्हा ।
पाई के जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा ।
वा भरि तिहु लोकहि बाँधे, कोई न रहत उबाना ।
तीनि लोक एककरि गह कींन्हा, दिगमग कीन्हो ताना ।
आदि पुरुष बैठावन बैठे, कबिरा ज्योति समाना ।

शब्द 65

जोगिया फिर गयो नगर मझारी, जाय समान पाँच जहँ नारी ।
गयउ देसंतर कोइ न बतावै, जोगिया बहुरि गुफा नहिं आवै?
जरि गयो कंथ ध्वजा गै टूटी, भजिगौ डंड षपर गै फूटी ।
कहैं कबीर ई कलि है षोटी, जो करवा सो निकरै टोंटी ।

दुतिया और न कोई


शब्द 60

माया मोहहि मोहित कीन्हा, ताते ग्यान रतन हरि लीन्हा ।
जीवन ऐसो सपना जैसो, जीवन सपन समाना?
सब्द गुरु उपदेस दियो ते छाँडेउ परम निधाना ।
ज्योतिहि देष पतंग हूलसै पसू न पेषै आगी ।
काल फांस नर मुग्ध न चेतहु, कनक कामिनी लागी ।
सैयद सेष किताब नीरषै, पंडित सास्त्र बिचारै ।
सतगुरु के उपदेस बिना, ते जानि के जीवहि मारै ।
कहहु बिचार बिकार परिहरहु, तरन तारने सोई ।
कहैं कबीर भगवंत भजो नर, दुतिया और न कोई ।

शब्द 61

मरिहो रे तन क्या लै करि हो । प्राण छुटे बाहर लै धरिहो ।
काया बिगुरचन अनबनि बाटी । कोई जारै कोइ गाडै माटी ।
हिन्दु ले जारै तुर्क ले गाडे । यहि बिधि अंत दुनो घर छाँडे ।
कर्म फांस जम जाल पसारा । जस धीमर मछरी गहि मारा ।
राम बिना नर होइ हो कैसा । बाट मांझ गोबरौरा जैसा ।
कहैं कबीर पाछे पछतैहो । या घर से जब वा घर जैहो ।

शब्द 62

माई मैं दोनों कुल उजियारी ।
बारह षसम नैहरै षायों, सोरह षायो ससुरारी ।
सासु ननद पटिया मिलि बँधलैं, ससुरहि परलैं गारी ।
जारो मार्ग मैं तासु नारि की, सरिवर रचल हमारी ।
जना पांच कोषिया मिलि रषलों, और दुई औ चारी ।
पार परोसिनि करौं कलेवा, संगहि बुधि महतारी ।
सहजहि बपुरी सेज बिछावल, सुतलैं पाँव पसारी ।
आवों न जावों मरों नहिं जीवों, साहेब मेटल गारी ।
एक नाम मैं निजकै गहिलैं, तो छूटल संसारी ।
एक नाम बंदे का लेषों, कहैं कबीर पुकारी ।

माया महाठगिनि हम जानी


शब्द 57

ना हरि भजसि न आदति छूटी ।
सब्दहि समुझि सुधारत नाहीं, आँधर भये हियेहु की फूटी ।
पानी महँ पषान को रेषा, ठोंकत उठै भभूका ।
सहस्र घडा नित उठि जल ढारै, फिर सूषे का सूषा ।
सेतहि सेत सेत अंग भौ, सेन बाढी अधिकाई ।
जो सनिपात रोगिया माटै, सो साधन सिध पाई ।
अनहद कहत जग बिनसे, अनहद सृस्टि समानी ।
निकट पयाना जमपुर धावै, बोलै एकै बानी ।
सतगुरु मिलै बहुत सुष लहिये, सतगुरु सब्द सुधारै ।
कहैं कबीर ते सदा सुषी हैं, जो यह पदहि बिचारै ।

शब्द 58

नरहरि लागी दव बिनु ईंधन, मिलै न बुझावनहारा ।
मैं जानो तोही से ब्यापै, जरत सकल संसारा ।
पानी माहिँ अग्नि को अंकुर, जरत बुझावै पानी ।
एक न जरै जरै नव नारी, जुक्ति न काहू जानी ।
सहर जरै पहरु सुष सोवै, कहे कुसल घर मेरा ।
पुरिया जरे वस्तु निज उबरे, बिकल राम रंग तेरा ।
कुबजा पुरुष गले एक लागा, पूजि न मन के सरधा ।
करत बिचार जन्म जन्म गौ षीसै, ई तन रहत असाधा ।
जानि बूझि जो कपट करत है, तेहि अस मंद न कोई ।
कहैं कबीर तेहि मूढ को, भला कवन बिधि होई ।

शब्द 59

माया महाठगिनि हम जानी ।
तिर्गुन फाँस लिये कर डोले बोलै मधुरी बानी ।
केसव के कमला हो बैठी सिव के भवन भवानी ।
पंडा के मूरति हो बैठी तीरथहू में पानी ।
योगी के योगिन हो बैठी राजा के घर रानी ।
काहू के हीरा हो बैठी काहु के कौडी कानी ।
भक्तों के भक्तिनि हो बैठी ब्रह्मा के ब्रह्मानी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो ई सब अकथ कहानी ।

साँई के संग सासुर आई


शब्द 54

साँई के संग सासुर आई ।
संग न सूती स्वाद न मानी, गयो जोबन सपने की नाईं ।
जना चारि मिलि लगन सुधाये, जना पाँच मिलि माँडा छाये ।
सषी सहेली मंगल गावै, दुष सुष माथे हलदि चढावै ।
नाना रूप परी मन भाँवरि, गाँठि जोरि भाई पति आई ।
अर्धा दे ले चली सुआसनि, चौके राँड भई संग साईं ।
भयो बिवाह चली बिनु दुलहा, बाट जात समधी मुसुकाई ।
कहैं कबीर हम गौने जैबे, तरब कंत लै तूर बजैबे ।

शब्द 55

नर को ढाढस देषहु आई, कछु अकथ कथा है भाई ।
सिंह सार्दुल एक हर जोतिन, सीकस बोइन धाना ।
बन को भलुइया चाषुर फेरैं, छागर भये किसाना ।
छेरी बाघहि ब्याह होत है, मंगल गावै गाई ।
बन के रोझ धरि दाइज दीन्हो, गो लोकन्दे जाई ।
कागा कापड धोवन लागे, बकुला क्रीपहि दाँता ।
माषी मूड मुडावन लागी, हमहूं जाब बराता ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अर्थावै ।
सोई पंडित सोई ग्याता, सोई भक्त कहावै ।

शब्द 56

नर को नहिं परतीत हमारी ।
झूठा बनिज कियो झूठे यो, पूंजो सबन मिलि हारी ।
षट दरसन मिलि पंथ चलायो, तिरदेवा अधिकारी ।
राजा देस बडो परपंची, रइत रहत उजारी ।
इतने उत उतते इत रहहीँ, जम की सांट सवारी ।
ज्यों कपि डोर बांध बाजीगर, अपनी षुसी परारी ।
इहै पेड उत्पित्त परलय का, विषया सबै बिकारी ।
जैसे स्वान अपावन राजी, त्यों लागी संसारी ।
कहैं कबीर यह अदूभुत ग्याना, को मानै बात हमारी ।
अजहूँ लेउँ छुडाय काल सों, जो करै सुरति सँभारी ।

पंडित होय सो लइ बिचारा


शब्द 51

बूझ बूझ पंडित मन चित लाय, कबहुँ भरल है कबहुँ सुषाय ।
षन ऊबै षन डूबै ऊन औ गाह, रतन न मिलै पावै नहिं थाह ।
नदिया नहीँ समद बहै नीर, मच्छ न मरे केवट रहे तीर ।
पोहकर नहिं बाँधल तहां घाट, पुरइन नहीं कमल महँ बाट ।
कहैं कबीर यह मन का धोष, बैठा रहै चलन यहै चोष ।

शब्द 52

बूझ लीजै ब्रह्म ग्यानी ।
घोरि घोरि बरषा बरसावै, परिया बूंद न पानी ।
चिंउटी के पग हस्ती बाँधे, छेरी बीगर षावै ।
उदधि मांह ते निकरी छांछरी, चौडे ग्राह करावै ।
मेंढुक सर्प रहत एक संगे, बिलइया स्वान बियाई ।
नित उठि सिंह सियार सो डरपे, अदभुत कथो न जाई ।
कौने संसय मृगा बन घेरे, पारथ बाना मेलै ।
उदधि भूप तें तरुवर डाहै, मच्छ अहेरा षेलै ।
कहैं कबीर यह अदभुत ग्याना, को यह ग्यानहि बूझै ।
बिन पंषै उडि जाइ अकासै, जीवहि मरन न सूझै ।

शब्द 53

वह बिरवा चीन्हे जो कोई, जरा मरन रहित तन होई ।
बिरवा एक सकल संसारा, पेड एक फूटल तिनि डारा ।
मध्य की डार चार फल लागा, साषा पत्र गिनै को वाका ।
बेलि एक त्रिभुवन लपटानी, बाँधे ते छूटहिं नहिं ग्यानी ।
कहैं कबीर हम डाति पुकारा, पंडित होय सो लइ बिचारा ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।