शब्द 63
मैं कासे कहौं को सुनै पतिआय । पुलवा के छुवत भँवर मबपरजाय ।
गगन मंदिल बिच फूल एक फूला । तर भौ डार उपर भो मूला ।
जोतिये न बोइये सिचिये न सोई । डार पात बिनु एक होई ।
फुल भल फुलल मलिनि भल गांथल । फुलवा बिनसिगौ भँवर निरासल ।
कहैं कबीर सुनों संतो भाई । पंडित जन फुल रहल लोभाई ।
शब्द 64
जोलहा बीनहु हो हरि नामा, जाके सुर नर मुनि धरैं ध्याना ।
ताना तनै को अहुठा लीन्हा, चरषी चारी बेदा ।
सर षूटी एक राम नरायन, पूरन प्रगटे कामा ।
भवसागर एक कठवत कीन्हा । तामें मांडी साना?
माडी का तन माडि रहो है । माडी बिरलै जाना?
चांद सूर्य दुइ गोडा कीन्हा । माँझदीप कियो माँझा?
त्रिभुवन नाथ जो माँजन लागे, स्याम मरोरिया दीन्हा ।
पाई के जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा ।
वा भरि तिहु लोकहि बाँधे, कोई न रहत उबाना ।
तीनि लोक एककरि गह कींन्हा, दिगमग कीन्हो ताना ।
आदि पुरुष बैठावन बैठे, कबिरा ज्योति समाना ।
शब्द 65
जोगिया फिर गयो नगर मझारी, जाय समान पाँच जहँ नारी ।
गयउ देसंतर कोइ न बतावै, जोगिया बहुरि गुफा नहिं आवै?
जरि गयो कंथ ध्वजा गै टूटी, भजिगौ डंड षपर गै फूटी ।
कहैं कबीर ई कलि है षोटी, जो करवा सो निकरै टोंटी ।