शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

अवधू सो योगी गुरु मेरा


शब्द 24
अवधू सो योगी गुरु मेरा, जो यह पद का करै निबेरा ।
तरुवर एक मूल बिनु ठाढा, बिनु फूले फल लागा ।
साषा पत्र कछू नहिं वाके, अष्ट गँगन मुष जागा ।
पौ बिनु पत्र करह बिनु तुम्बा, बिनु जिभ्या गुन गावै ।
गावनहार के रूप न रेषा, सतगुरु होय लषायै ।
पंछी षोज मीन को मारग, कहँहिं कबिर दोउ भारी ।
अपरमपार पार पुरुषोतम, मूरत की बलिहारी ।

शब्द 25
अवधू ओतत रावल राता, नाचै बाजन बाजु बराता ।
भौर के माथे दुलहा दीन्हा, अकथा जोरि कहाता ।
मंडये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र विवाहल माता ।
दुलहिन लीपि चौक बैठारे, निरभय पद परमाता ।
माँ तै उलटि बरातै षायो, भली बनी कुसलाता ।
पानी ग्रहन भयो भव मंडन, सुषमुनि सुरति समानी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, बूझो पंडित ग्यानी ।

शब्द 26
कोई बिरले दोस्त हमारे, बहुत भाइ क्या कहिये ।
गाठन भजन संवारन आपै, राम रषे त्यों रहिये ।
आसन पवन योग श्रुति स्मृति, ज्योतिस पढि बैलाना ।
छौ दरसन पाषंड छानवे, एकल काहु न जाना ।
आलम दुनी सकल फिरि आयो, एकल उहै न आना ।
तजि करिगह सब जगत उचाये, मन मो मन न समाना ।
कहैं कबीर योगि औ जंगम, फीकी उनकी आसा ।
रामहि नाम रटै ज्यों चातृक, निस्चय भक्ति निवासा ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।