शब्द 33
हंसा प्यारे सरवर तजि कहँ जाय ।
जेहि सरबर बीच मोतिया चुगते, बहुबिधि केलि कराय ।
सुषे ताल पुरइन जल छाडै, कमल गये कुम्हिलाय ।
कहैं कबीर जो अबकी बिछुरे, बहुरि मिलो कब आय ।
शब्द 34
हरिजन हंस दसा लिय डोलैं, निर्मल नाम चुनि चुनि बोलैं ।
मुक्ताहल लिये चोंच लोभावैं, मौन रहै कि हरि जस गावै ।
मानसरोवर तट के वासी, राम चरन चित अंत उदासी ।
काग कुबुद्धि निकट नहिं आवै, प्रतिदिन हंसा दर्सन पावै ।
नीर छीर का करै निबेरा, कहे कबीर सोइ जन मेरा ।
शब्द 35
हरि मोर पीव मैं राम की बहुरिया । राम मोर बडो मैं तन की लहुरिया
।
हरि मोर रहटा मैं रतन पिउरिया । हरि को नाम लै कतती बहुरिया ।
मास तागा वरष दिन कुकुरी । लोग कहैं भल कातल बपुरी ।
कहैं कबीर सूत भल काता । चरषा न होय मुक्तिकर दाता ?
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