शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

अवधू छाडहु मन विस्तारा


शब्द 21
राम न रमसि कौन डंड लागा, मरि जैबे का करबे अभागा ।
कोई तीरथ कोई मुंडित केसा, पाषंड भर्म मंत्र उपदेसा ।
विद्रया बेद पढि करै हंकारा, अंतकाल मुष फांके छारा ।
दुषित सुषित हो कुटुंब जेमावे, मरन बार यकसर दुष पावै ।
कहै कबीर ई कलि है षोटी, जो रहै करवा सो निकरै टोटी ।

शब्द 22
अवधू छाडहु मन विस्तारा ।
सो पद गहौ जाहिते सदगति, पारब्रह्म से न्यारा ।
नहीं महादेव नहीं मुहम्मद, हरि हजरत तब नाहीं ।
आदम ब्रह्मा कछु नहिं होते, नहीं धूप नहिं छाँहीं ।
असी सहस्र पैगम्बर नाहीं, सहस्र अठासी यूनी । मूनी
चन्द्र सूर्य तारागन नाहीँ, मच्छ कच्छ नहिं दूनी ।
वेद किताब स्मृत नहिं संजम, जीव नहीं परछाई ।
बंग निमाज कलिमा नहिं होते, रामहु नाहिं षोदाई ।
आदि अंत मन मध्य न होते, आतम पवन न पानी ।
लष चौरासी जीव जंतु नहिं, साषी सब्द न बानी ।
कहैं कबीर सुनो हो अवधू, आगे करहु विचारा ।
पूरन ब्रह्म कहां ते प्रगटे, क्रितम किन्ह उपचारा?

शब्द 23
अवधू कुदरत की गति न्यारी ।
रंक निमाज करै वह राजा, भूपति करै भिषारी ।
भाते लैंग हरफ ना लागै, चंदन फूल न फूला ।
मच्छ सिकारी रमै जंगल में, सिंह समुद्रहि झूला ।
रेंड रूष भये मलयागिर, चहूं दिस फूटी बासा ।
तीन लोग ब्रह्मांड षंड में, अंधरा देषै तमासा ।
पंगा मेरु सुमेरु उलंघै, त्रिभुवन मुक्ता डोलै ।
गूंगा ग्यान विग्यान प्रगासै, अनहद बानी बोलै ।
अकासै बांधि पतालहि पठवै, सेष स्वर्ग पर राजै ।
कहैं कबीर राम है राजा, जो कछु करै सो छाजै ।

कोई टिप्पणी नहीं:

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।