शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

आत्मस्वरूप परमात्मा का वास्तविक नाम ‘विदेह’ है


कबीर साहब बोले - धर्मदास, जब तक देह से परे, विदेह नाम का ध्यान होने में नहीं आता, तब तक जीव इस असार संसार में ही भटकता रहता है । विदेह ध्यान और विदेह नाम इन दोनों को अच्छी तरह से समझ लेता है तो उसके सभी संदेह मिट जाते हैं ।

जब लग ध्यान विदेह न आवे, तब लग जिव भव भटका खावे।
ध्यान विदेह और नाम विदेहा, दोउ लखि पावे मिटे संदेहा।

मनुष्य का पाँच तत्वों से बना यह शरीर जङ परिवर्तनशील तथा नाशवान है । यह अनित्य है । इस शरीर का एक नाम-रूप होता है परन्तु वह स्थायी नहीं रहता । राम, कृष्ण, ईसा, लक्ष्मी, दुर्गा, शंकर आदि जितने भी नाम इस संसार में बोले जाते हैं, ये सब शरीरी नाम हैं, वाणी के नाम हैं ।

लेकिन इसके विपरीत इस जङ और नाशवान देह से परे उस अविनाशी, चैतन्य, शाश्वत और निज आत्मस्वरूप, परमात्मा का वास्तविक नाम विदेह है, और ध्वनि रूप है ।
वही सत्य है, वही सर्वोपरि है अतः मन से सत्यनाम का सुमरन करो ।

वहाँ दिन रात की स्थिति तथा प्रथ्वी, अग्नि, वायु आदि पाँच तत्वों का स्थान नहीं है । वहाँ ध्यान लगाने से किसी भी योनि के जन्म-मरण का दुख जीव को प्राप्त नहीं होता ।
वहाँ के सुख (ध्यान में मिलने वाला) आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता । जैसे गूँगे को सपना दिखता है, वैसे ही जीवित जन्म को देखो । जीते जी इसी जन्म में देखो ।

धर्मदास, ध्यान करते हुये जब साधक का ध्यान क्षण भर के लिये भी ‘विदेह’ परमात्मा में लीन हो जाता है तो उस क्षण की महिमा आनन्द का वर्णन करना असंभव ही है ।
भगवान आदि के शरीर के रूप तथा नामों को याद करके सब पुकारते हैं परन्तु उस विदेहस्वरूप के विदेहनाम को कोई बिरला ही जान पाता है ।

जो कोई चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में पवित्र कही जाने वाली काशी नगरी में निवास करे । नैमिषारण्य, बद्रीनाथ आदि तीर्थों पर जाये और गया, द्वारका, प्रयाग में स्नान करे । परन्तु सारशब्द (निर्वाणी नाम) का रहस्य जाने बिना वह जन्म-मरण के दुख और बेहद कष्टदायी यमपुर में ही जायेगा, और वास करेगा ।

धर्मदास, चाहे कोई अड़सठ तीर्थों मथुरा, काशी, हरिद्वार, रामेश्वर, गंगासागर आदि में स्नान कर ले । चाहे सारी प्रथ्वी की परिकृमा कर ले परन्तु सारशब्द का ज्ञान जाने बिना उसका भ्रम, अज्ञान नहीं मिट सकता ।

धर्मदास, मैं कहाँ तक उस सारशब्द के नाम के प्रभाव का वर्णन करूँ, जो उसका हंसदीक्षा लेकर नियम से उसका सुमरन करेगा । उसका मृत्यु का भय सदा के लिये समाप्त हो जायेगा । सभी नामों से अदभुत सत्यपुरुष का सारनाम सिर्फ़ सदगुरू से ही प्राप्त होता है । उस सारनाम की डोर पकङकर ही भक्त साधक सत्यलोक को जाता है ।
उस सारनाम का ध्यान करने से सदगुरू का वह हंस भक्त पाँचतत्वों से परे परमतत्व में समा जाता है, अर्थात वैसा ही हो जाता है ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।