शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

शरीर ज्ञान परिचय


धर्मदास बोले - साहिब, मैं बङभागी हूँ, जो आपने मुझे ज्ञान दिया । अब आप मुझे शरीर का निर्णय विचार भी कहिये, इसमें कौन सा देवता कहाँ रहता है और उसका क्या कार्य है? नाङी रोम कितने हैं, और शरीर में खून किसलिये है, तथा स्वांस कौन से मार्ग से चलती है?

आँते, पित्त, फ़ेफ़ङा, और आमाशय इनके बारे में भी बताओ । शरीर में स्थिति कौन से कमल पर कितना जप होता है, और रात दिन में कितनी स्वांस चलती है । कहाँ से शब्द उठकर आता है, तथा कहाँ जाकर वह समाता है? अगर कोई जीव झिलमिल ज्योति को देखता है, तो मुझे उसका भी ज्ञान विवेक कहो कि उसने कौन से देवता का दर्शन पाया?

कबीर बोले - धर्मदास, अब तुम शरीर विचार सुनो । सत्यपुरुष का नाम सबसे न्यारा और शरीर से अलग है, क्योंकि वह आदिपुरुष कृमशः स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण तथा कैवल्य शरीरों से अलग है । इसलिये उसका नाम भी अलग ही है ।

पहला मूलाधार चक्र गुदा स्थान हैयहाँ चार दल का कमल है । इसका देवता गणेश है, यहाँ सोलह सौ अजपा जाप है ।
मूलाधार के ऊपर स्वाधिष्ठान चक्र है, यह छह दल का कमल है । यहाँ ब्रह्मा, सावित्री का स्थान है, यहाँ छह हजार अजपा जाप है ।
आठ दल (पत्ते) का कमल नाभि स्थान पर है । यह विष्णु लक्ष्मी का स्थान है, यहाँ छह हजार अजपा जाप है ।

इसके ऊपर ह्रदय स्थान पर बारह दल का कमल है, यह शिव पार्वती का स्थान है । यहाँ छह हजार अजपा जाप है ।
विशुद्ध चक्र का स्थान कंठ (गला) है, यह सोलह दल का कमल है । इसमें सरस्वती का स्थान है, इसके लिये एक हजार अजपा जाप है ।
भंवर गुफ़ा दो दल का कमल है, वहाँ मनराजा का थाना (चौकी - मुक्त होते जीव को भरमाने के लिये) है । इसके लिये भी एक हजार अजपा जाप है ।
इस कमल के ऊपर शून्य स्थान है, वहाँ होती झिलमिल ज्योति को काल-निरंजन जानो ।
सबसे ऊपर सुरति कमलमें सदगुरू का वास है, वहाँ अनन्त अजपा जाप है ।

धर्मदास, सबसे नीचे मूलाधार चक्र से ऊपर तक इक्कीस हजार छह सौ स्वांस दिन-रात चलती है ।
(सामान्य स्वांस लेने और छोङने में चार सेकेंड का समय लगता है । इस हिसाब से चौबीस घंटे में इक्कीस हजार छह सौ स्वांस दिन रात आती जाती है)

धर्मदास, अब शरीर के बारे में जानो । पाँच तत्व से बना ये कुम्भ (घङा या घट) रूपी शरीर है, तथा शरीर में सात धातुयें रक्त, माँस, मेद, मज्जा, रस, शुक्र और अस्थि हैं । इनमें रस बना खून सारे शरीर में दौङता हुआ शरीर का पोषण करता है ।

जैसे प्रथ्वी पर असंख्य पेङ पौधे हैं वैसे ही प्रथ्वी रूपी इस शरीर पर करोङों रोम (रोंयें) होते हैं । इस शरीर की संरचना में बहत्तर कोठे हैं । जहाँ बहत्तर हजार नाङियों की गाँठ बँधी हुयी है, इस तरह शरीर में धमनी और शिरा प्रधान नाङियाँ हैं ।

बहत्तर नाङियों में नौ पुहुखा, गंधारी, कुहू, वारणी, गणेशनी, पयस्विनी, हस्तिनी, अलंवुषा, शंखिनी हैं । इन नौ में भी इङा, पिंगला, सुष्मना ये तीन प्रधान हैं । इन तीन नाङियों में भी सुष्मना खास है । इस नाङी के द्वारा ही योगी सत्ययात्रा करते हैं ।
नीचे मूलाधार चक्र से लेकर ऊपर ब्रह्मरंध्र तक जितने भी कमलदल चक्र आते हैं ।
उनसे शब्द उठता है और उनका गुण प्रकट करता है । तब वहाँ से फ़िर उठकर वह शब्द शून्य में समा जाता है ।

आँत का इक्कीस हाथ होने का प्रमाण है, और आमाशय सवा हाथ अनुमान है । नभ-क्षेत्र का सवा हाथ प्रमाण है, और इसमें सात खिङकी दो कान, दो आँख, दो नाक छिद, एक मुँह है ।

इस तरह इस शरीर में स्थित प्राणवायु के रहस्य को जो योगी जान लेता है, और निरंतर ये योग करता है । परन्तु सदगुरू की भक्ति के बिना वह भी लख चौरासी में ही जाता है ।
हर तरह से ज्ञानयोग कर्मयोग से श्रेष्ठ है । अतः इन विभिन्न योगों के चक्कर में न पङ कर नाम की सहज भक्ति से अपना उद्धार करे, और शरीर में रहने वाले अत्यन्त बलवान शत्रु काम, क्रोध, मद, लोभ आदि को ज्ञान द्वारा नष्ट करके जीवन मुक्त होकर रहे ।

धर्मदास, ये सब कर्मकांड मन के व्यवहार हैं अतः तुम सदगुरू के मत से ज्ञान को समझो । काल-निरंजन या मन शून्य में ज्योति दिखाता है, जिसे देखकर जीव उसे ही ईश्वर मानकर धोखे में पङ जाता है । इस प्रकार ये मनरूपीकाल-निरंजन अनेक प्रकार के भ्रम उत्पन्न करता है ।

धर्मदास, योगसाधना में मस्तक में प्राण रोकने से जो ज्योति उत्पन्न होती है, वह आकार रहित निराकार मन ही है । मन में ही जीवों को भरमाने उन्हें पापकर्मों में विषयों में प्रवृत करने की शक्ति है । उसी शक्ति से वह सब जीवों को कुचलता है, उसकी यह शक्ति तीनों लोक में फ़ैली हुयी है ।

इस तरह मन द्वारा भ्रमित यह मनुष्य खुद को पहचान कर असंख्य जन्मों से धोखा खा रहा है, और ये भी नहीं सोच पाता कि काल-निरंजन के कपट से जिन तुच्छ देवी देवताओं के आगे वह सिर झुकाता है, वे सब उस (आत्मा-मनुष्य) के ही आश्रित हैं । धर्मदास, यह सब निरंजन का जाल है । जो मनुष्य देवी देवताओं को पूजता हुआ कल्याण की आशा करता है परन्तु सत्यनाम के बिना यह यम की फ़ाँस कभी नहीं कटेगी ।

कोई टिप्पणी नहीं:

WELCOME

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।