कबीर
साहब बोले - ऐसे जो कल्याण मोक्ष चाहने वाले सच्चे अनुरागी
हैं । वह प्रभु के सत्यनाम ज्ञान से सच्ची लगन लगाये, और
भक्ति-भाव में कुल परिवार सभी को भुला दे । पुत्र और स्त्री आदि का मोह मन में कभी
न आने दे, और जन्म से लेकर मृत्यु तक सम्पूर्ण जीवन को स्वपन
के समान समझे ।
धर्मदास, इस संसार में जीवन बहुत थोङा है, और अंत में मृत्यु
समय कोई मददगार कोई सहायक नहीं होता, इसलिये व्यर्थ की मोह,
ममता में नहीं पङना चाहिये । क्योंकि अन्त में तो सभी साथ छोङ देते
हैं, और जीव अपने कर्म के अनुसार अपनी गति को प्राप्त होता है
।
इस
संसार में प्राय सभी को स्त्री बहुत प्यारी होती है । जन्म देने वाले और पालन पोषण
करने वाले माता पिता भी उसके समान प्यारे नहीं लगते । उस पत्नी के लिये यदि उसका
पति अपना सिर भी कटा दे, तो भी वह जीवन के अन्त में मृत्यु के समय
प्रेम करने वाली सहायक सिद्ध नहीं होती, केवल अपने स्वार्थ
की पूर्ति के लिये ही रोना धोना करती है । स्वार्थ पूरा न होने पर वह शीघ्र ही
अपने पति को भूलकर पीहर जाने का मन बना लेती है ।
धर्मदास, जैसे सपने में राज्य, मान, सम्मान,
धन संपदा, प्रेम करने वाला परिवार एवं सहायक
मित्र आदि सभी मिल जाते हैं । परन्तु सपना समाप्त हो जाने पर नींद से जागने पर
वास्तविकता का पता चलता है कि ये सब जो देखा था, वह सब केवल
एक सपना ही था । ठीक वैसे ही स्त्री, पुत्र, परिवार के लोग धन, संपत्ति आदि सपने के प्रेमी दिखाई
पङते हैं अंततः ये सब सपने की तरह ही खो जायेंगे ।
ऐसी
स्थिति में उचित यही है कि इन सब सम्बन्धों को केवल कर्तव्य समझकर निबाहता हुआ
परमात्मा के सत्यनाम ज्ञान को स्वीकार करके इंसान अपना उद्धार करे ।
ये
दुर्लभ नामभक्ति ही इस लोक और परलोक में सदैव ही सहायक है । इस असार संसार में
अपने शरीर के समान प्रिय और कोई दूसरा नहीं होता । परन्तु अन्त समय में यह शरीर भी
अपना साथ नहीं देता, तब ये भी साथ छोङ देता है ।
धर्मदास, इस संसार में ऐसा कोई भी सामर्थ्यवान दिखाई नहीं देता, जो जीव को अन्त समय में मृत्यु के मुँह में जाने से बचा ले । उस समय
मनुष्य के सभी नाते रिश्तेदार, यार, दोस्त,
प्रियजन आदि सभी बेवश और असमर्थ होते हैं ।
हाँ, सिर्फ़ एक हस्ती ऐसी अवश्य होती है, जिसको मैं
निश्चय से कहता हूँ । लेकिन जिसके ह्रदय में उनके प्रति सच्ची प्रेम भक्ति होगी,
वही उनसे लाभ प्राप्त कर पायेगा, और वह एक
सदगुरू ही होते हैं, जो इस जीव को समस्त सांसारिक काल बंधनों
से और काल-माया जाल से मुक्त कराते हैं । मेरी यह बात तुम बिना किसी संशय के
निश्चय पूर्वक मानो ।
काल
यानी मृत्यु प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाला एक सत्य है । लेकिन
काल-काल सभी कहते तो फ़िरते हैं, परन्तु काल वास्तव में
है क्या? यह कोई नहीं जानता । सिर्फ़ इस शरीर का छूटना मरना
ही काल नहीं है । वास्तव में जीव के मन में जितनी भी कल्पना है, वह सब काल ही कहलाती है । इन्हीं कल्पनाओं के बंधन में पङा हुआ जीव काल
को प्राप्त होता है ।
इस
संसार में जीव जिस शरीर के साथ उत्पन्न होता है, उसकी
मृत्यु अवश्य होती है ।
लेकिन
जिसका जन्म ही न हुआ हो, उसकी मृत्यु कैसे हो सकती है? यह सत्य है कि जो पैदा होता है, केवल वही मरता है ।
इसलिये काल से बचने का उपाय है कि जीव का पुनर्जन्म ही न हो । इसके लिये वह जिन
‘कारण-संस्कारों’ से यहाँ पङा हुआ है, उसे ही समूल नष्ट कर
दिया जाय ।
सांसारिक
मोह-माया और विषय वासनाओं के बंधन में पङा हुआ अज्ञानी जीव बारबार शरीर को धारण
करके पैदा होता है, और मरता है । इस प्रकार वह मोहवश आवागमन के
चक्र में पङा हुआ अनन्त-काल से अनन्त दुखों को भोग रहा है ।
जीव की
इस अज्ञानता को किसी भी अस्त्र शस्त्र से काटा नहीं जा सकता दूर नहीं किया जा सकता
है । इसे केवल ज्ञान-युक्ति से ही काटा जा सकता है । परन्तु वह अति विलक्षण ज्ञान
युक्ति सिर्फ़ पूर्ण सदगुरू देव से ही प्राप्त होती है । जिस जिज्ञासु इंसान के
ह्रदय में मोक्ष कामना के लिये सत्य अनुराग होता है, उसे ही
सदगुरू दयाभाव से सत्यज्ञान प्रदान करते हैं । उस ज्ञान की सच्ची भक्ति साधना से
जीव आवागमन के चक्र से छूट जाता है ।
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