शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

काल कसाई, जीव बकरा


कबीर साहब बोले - धर्मदास, द्वापर युग बीत गया और कलियुग आया । तब मैं फ़िर सत्यपुरुष की आज्ञा से जीवों को चेताने हेतु प्रथ्वी पर आया, और मैंने काल-निरंजन को अपनी ओर आते देखा ।

मुझे देखकर वह भय से मुरझा ही गया, और बोला किसलिये मुझे दुखी करते हो, और मेरे भक्ष्य भोजन जीवों को सत्यलोक पहुँचाते हो । तीनों युग त्रेता, द्वापर, सतयुग में आप संसार में गये, और जीवों का कल्याण कर मेरा संसार उजाङा । सत्यपुरुष ने जीवों पर शासन करने का वचन मुझे दिया हुआ है । मेरे अधिकार क्षेत्र से आप जीव को छुङा लेते हो ।

आपके अलावा यदि कोई दूसरा भाई इस प्रकार आता तो मैं उसे मारकर खा जाता ।
लेकिन आप पर मेरा कोई वश नहीं चलता । आपके बल प्रताप से ही हंसजीव (मनुष्य) अपने वास्तविक घर अमरलोक को जाते हैं ।

अब आप फ़िर संसार में जा रहे हो । परन्तु आपके शब्द उपदेश को संसार में कोई नहीं सुनेगा । शुभ और अशुभ कर्मों के भरमजाल का मैंने ऐसा ठाठ मोह सुख रचा है कि जिससे उसमें फ़ँसा जीव आपके बताये सत्यलोक के सदमार्ग को नहीं समझ पायेगा ।
धर्म के नाम पर मैंने घर-घर में भ्रम का भूत पैदा कर दिया है ।

इसलिये सभी जीव असली पूजा को भूलकर भगवान, देवी, देवता, भूत, भैरव, पिशाच आदि की पूजा भक्ति में लगे हुये हैं और इसी को सत्य समझ कर खुद को धन्य मान रहे हैं । इस प्रकार धोखा देकर मैंने सब जीवों को अपनी कठपुतली बनाया हुआ है । संसार में जब जीवों को भ्रम और अज्ञान का भूत लगेगा । परन्तु जो आपको तथा आपके सदउपदेश को पहचानेगा उसका भरम तत्काल दूर हो जायेगा ।

लेकिन मेरे भ्रम भूत से ग्रस्त मनुष्य मदिरा-मांस खायेंगे पियेंगे, और ऐसे नीच मनुष्यों को मांस खाना बहुत प्रिय होगा । मैं अपने ऐसे मतपंथ प्रकट करूँगा, जिसमें सब मनुष्य माँस मदिरा का सेवन करेंगे । तब मैं चंडी, योगिनी, भूत, प्रेत आदि को मनुष्य से पुजवाऊँगा, और इसी भ्रम से सारे संसार के जीवों को भटकाऊँगा ।

जीवों को अनेक प्रकार के मोह बंधनों में बाँधकर इस प्रकार के फ़ँदों में फ़ँसा दूँगा कि वे अपने अन्त समय तक मृत्यु को भूलकर पाप-कर्मों में लिप्त और वास्तविक भक्ति से दूर रहेंगे, और इस प्रकार मोह बंधनों में बँधे वे जीव जन्म, पुनर्जन्म और चौरासी लाख योनियों में बारम्बार भटकते ही रहेंगे ।

भाई, आपके द्वारा बनी हुयी सत्यपुरुष की भक्ति तो बहुत कठिन है । आप समझाकर कहोगे तब भी कोई नहीं मानेगा ।

कबीर साहब बोले - निरंजन, तुमने जीवों के साथ बङा धोखा किया है, मैंने तुम्हारे धोखे को पहचान लिया है । सत्यपुरुष ने जो वचन कहा है, वह दूसरा नहीं हो सकता । उसी की वजह से तुम जीवों को सताते, और मारते हो ।

सत्यपुरुष ने मुझे आज्ञा दी है, उसके अनुसार सब श्रद्धालु जीव सत्यनाम के प्रेमी होंगे । इसलिये मैं सरल स्वभाव से जीवों को समझाऊँगा, और सत्यज्ञान को ग्रहण करने वाले अंकुरी जीवों को भवसागर से छुङाऊँगा ।

तुमने मोह, माया के जो करोङों जाल रच रखे हैं, और वेद, शास्त्र, पुराण में जो अपनी महिमा बताकर जीव को भरमाया है । यदि मैं प्रत्यक्ष कला धारण करके संसार में आऊँ तो तेरा जाल और ये झूठी महिमा समाप्त कर सब जीवों को संसार से मुक्त करा दूँ ।

लेकिन जो मैं ऐसा करता हूँ, तो सत्यपुरुष का वचन भंग होता है । उनका वचन तो सदा न टूटने वाला, न डोलने वाला, और बिना मोह का अनमोल है अतः मैं उसका पालन अवश्य ही करूँगा । जो श्रेष्ठ जीव होंगे, वे मेरे सारशब्द ज्ञान को मानेंगे ।

तेरी चालाकी समझ में आते ही शीघ्र सावधान होने वाले अंकुरी जीवों को मैं भवसागर से मुक्त कराऊँगा, और तुम्हारे सारे जाल को काटकर उन्हें सत्यलोक ले जाऊँगा । जो तुमने जीवों के लिये करोङों भ्रम फ़ैला रखे हैं, वे तुम्हारे फ़ैलाये हुये भ्रम को नहीं मानेंगे । मैं सब जीवों का सत्यशब्द पक्का करके उनके सारे भ्रम छुङा दूँगा ।

निरंजन बोला - जीवों को सुख देने वाले, मुझे एक बात समझा कर कहो कि जो तुमको लगन लगाकर रहेगा, उसके पास मैं काल नहीं जाऊँगा । मेरा कालदूत आपके हंस को नहीं पायेगा, और यदि वह उस हंस-जीव के पास (सत्यनाम दीक्षा वाले के पास) जायेगा, तो मेरा वह कालदूत मूर्छित हो जायेगा, और मेरे पास खाली हाथ लौट आयेगा । लेकिन आपके गुप्त-ज्ञान की यह बात मुझे समझ नहीं आती अतः उसका भेद समझा कर कहो, वह क्या है?

तब मैंने कहा - निरंजन, ध्यान से सुन, सत्य श्रेष्ठ पहचान है, और वह सत्यशब्द (निर्वाणी नाम) मोक्ष प्रदान कराने वाला है । सत्यपुरुष का नाम गुप्त प्रमाणहै ।

यह सुनकर काल-निरंजन बोला - अंतर्यामी स्वामी, सुनो और मुझ पर कृपा करो ।
इस युग में आपका क्या नाम होगा, मुझे बताओ? और अपने नामदान उपदेश को भी बताओ कि किस तरह और कौन सा नामआप जीव को दोगे । वह सब मुझे बताओ । जिस कारण आप संसार में जा रहे हो, उसका सब भेद मुझसे कहो ।

तब मैं भी जीवों को उस नाम का उपदेश कर चेताऊँगा, और उन जीवों को सत्यपुरुष के सत्यलोक भेजूँगा । प्रभु, आप मुझे अपना दास बना लीजिये तथा ये सारा गुप्त-ज्ञान मुझे भी समझा दीजिये ।

तब मैंने कहा - निरंजन सुन, मैं जानता हूँ, आगे के समय में तुम कैसा छल करने वाले हो । दिखावे के लिये तो तुम मेरे दास रहोगे, और गुप्त रूप से कपट करोगे । गुप्त सारशब्द का भेद ज्ञान मैं तुम्हें नहीं दूँगा । सत्यपुरुष ने ऐसा आदेश मुझे नहीं दिया है ।
इस कलियुग में मेरा नाम कबीर होगा, और यह इतना प्रभावी होगा कि कबीरकहने से यम अथवा उसका दूत उस श्रद्धालु जीव के पास नहीं जायेगा ।

तब काल-निरंजन बोला आप मुझसे द्वेष रखते हो लेकिन एक खेल मैं फ़िर भी खेलूँगा । मैं ऐसी छलपूर्ण बुद्धि बनाऊँगा, जिससे अनेक नकली हंस जीवों को अपने साथ रखूँगा, और आपके समान रूप बनाऊँगा तथा आपका नाम लेकर अपना मत चलाऊँगा । इस प्रकार बहुत से जीवों को धोखे में डाल दूँगा कि वे समझे, वे सत्यनाम का ही मार्ग अपनाये हुये हैं । इससे अल्पज्ञ जीव सत्य-असत्य को नहीं समझ पायेंगे ।

कबीर साहब बोले - अरे काल-निरंजन, तू तो सत्यपुरुष का विरोधी है, उनके ही विरुद्ध षङयंत्र रचता है, अपनी छलपूर्ण बुद्धि मुझे सुनाता है । परन्तु जो जीव सत्यनाम का प्रेमी होगा, वो इस धोखे में नहीं आयेगा । जो सच्चा हंस होगा, वह तुम्हारे द्वारा मेरे ज्ञानग्रन्थों में मिलायी गयी मिलावट और मेरी वाणी का सत्य साफ़ साफ़ पहचानेगा, और समझेगा । जिस जीव को मैं दीक्षा दूँगा, उसे तुम्हारे धोखे की पहचान भी करा दूँगा । तब वह तुम्हारे धोखे में नहीं आयेगा ।

धर्मदास, ये बात सुनकर काल-निरंजन चुप हो गया, और अंतर्ध्यान होकर अपने भवन को चला गया । धर्मदास, इस काल की गति बहुत निकृष्ट और कठिन है । यह धोखे से जीवों के मन-बुद्धि को अपने फ़ंदे में फ़ाँस लेता है ।
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कबीर साहब ने धर्मदास द्वारा काल के चरित्र के बारे में पूछने पर बताया कि - जैसे कसाई बकरा पालता है । उसके लिये चारे पानी की व्यवस्था करता है, गर्मी सर्दी से बचने के लिए भी प्रबन्ध करता है । जिसकी वजह से उन अबोध बकरों को लगता है कि हमारा मालिक बहुत अच्छा और दयालु है हमारा कितना ध्यान रखता है ।

इसलिये जब वह कसाई उनके पास आता है तो वे सीधे साधे बकरे उसे अपना सही मालिक जानकर अपना प्यार जताने के लिए आगे वाले पैर उठाकर कसाई के शरीर को स्पर्श करते हैं । कुछ उसके हाथ पैरों को भी चाटते हैं ।

कसाई जब उन बकरों को छूकर, कमर पर हाथ लगाकर, दबा दबाकर देखता है तो बेचारे बकरे समझते हैं मालिक प्यार दिखा रहा है । परन्तु कसाई देख रहा है कि बकरे में कितना मांस हो गया? और जब मांस खरीदने ग्राहक आता है तो उस समय कसाई नहीं देखता कि किसका बाप मरेगा किसकी बेटी मरेगी किसका पुत्र मरेगा या परिवार मर रहा है ।

वो तो बस, छुरी रखी और कर दिया - मैंऽऽ

उनको सुविधा देने खिलाने पिलाने का उसका यही उद्देश्य था । ठीक इसी प्रकार सर्व प्राणी कालब्रह्म की पूजा-साधना करके काल आहार ही बने हैं ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।