गुरुवार, जुलाई 12, 2018

काल का अपने दूतों को चाल समझाना


धर्मदास बोले - साहिब, जीवों के उद्धार के लिये जो वचन वंश चूङामणिसंसार में आया वह सब आपने बताया । वचन वंश को जो ज्ञानी पहचान लेगा, उसको काल-निरंजन का दुर्गदानीजैसा दूत भी नहीं रोक पायेगा । तीसरा सुरति अंश चूङामणिसंसार में प्रकट हुआ है, वह मैंने देख लिया । फ़िर भी मुझे एक संशय है ।

साहिब, मुझे समर्थ सत्यपुरुष ने भेजा था परन्तु संसार में आकर मैं भी काल-निरंजन के जाल में फ़ँस गया । आप मुझे सत सुकृतका अंश कहते हो तब भी भयंकर काल-निरंजन ने मुझे डस लिया । अगर ऐसा ही सब वंशों के साथ हुआ, तो संसार के सब जीव नष्ट हो जायेंगे, इसलिये ऐसी कृपा करिये कि काल-निरंजन सत्यपुरुष के वंशों को अपने छल भेद से न छल पाये । 

कबीर साहिब बोले यह तुमने ठीक ही कहा है, और तुम्हारा यह संशय भी सत्य है । धर्मदास, अब आगे भविष्य में काल-निरंजन क्या चाल खेलेगा, वह मैं तुम्हें बताता हूँ । जब सतयुग मैं सत्यपुरुष ने मुझे बुलाया, और संसार में जाकर जीवों को चेताने के लिये कहा तो काल-निरंजन ने रास्ते में मुझसे झगङा किया, और मैंने उसका घमण्ड चूर-चूर कर दिया ।

पर उसने मेरे साथ एक धोखा किया, और याचना करते हुये मुझसे तीन युग मांग लिये ।
अन्यायी काल-निरंजन ने तब ऐसा कहा था - भाई मैं चौथा कलियुग नहीं माँगता ।
और मैंने उसे वचन दे दिया था, और तब जीवों के कल्याण हेतु संसार में आया । क्योंकि मैंने उसको तीन युग दे दिये थे । उसी से उस समय वचन मर्यादा के कारण अपना पंथ प्रकट नहीं किया ।

लेकिन जब चौथा कलियुग आया, तब सत्यपुरुष ने फ़िर से मुझे संसार में भेजा 
पहले की ही तरह कसाई काल-निरंजन ने मुझे रास्ते में रोका, और मेरे साथ झगङा किया । वह बात मैंने तुम्हें बता दी है, और काल-निरंजन के बारह पंथ का भेद भी बता दिया है ।

काल-निरंजन ने उस समय मुझसे धोखा कियाउसने मुझसे केवल बारह पंथकी बात कही थी, और गुप्त बात मुझको नहीं बतायी । तीन युग में तो वचन लेकर उसने मुझे विवश कर दिया, और कलियुग में बहुत जाल रचकर ऊधम मचाया । काल ने मुझसे सिर्फ़ बारह पंथ की कहकर गुप्त रूप से चार पंथऔर बनाये ।

जब मैंने जीवों को चेताने के लिये चार कङिहार गुरू के निर्माण की व्यवस्था की तो काल ने अपना अंश दूत भेज दिया तथा अपनी छल बुद्धि का विस्तार किया, और अपने चार अंश दूतों को बहुत शिक्षा दी ।

काल-निरंजन ने अपने दूतों से कहा मेरे अंशो, सुनो, तुम तो मेरे अपने वंश हो तुमसे जो कहूँ, उसे मानो और मेरी आज्ञा का पालन करो । भाई, हमारा एक दुश्मन हैजो संसार में कबीर नाम से जाना जाता है । वह हमारा भवसागर मिटाना चाहता है, और जीवों को दूसरे लोक (सत्यलोक) ले जाना चाहता है ।

वह छल कपट कर मेरी पूजा के विरुद्ध जगत में भ्रम फ़ैलाता है, और मेरी तरफ़ से सबका मन हटा देता है । वह सत्यनाम की समधुर टेर सुनाकर जीवों को सत्यलोक ले जाता है । इस संसार को प्रकाशित करने में मैंने अपना मन दिया हुआ है, और इसलिये मैंने तुमको उत्पन्न किया । मेरी आज्ञा मानकर तुम संसार में जाओ, और कबीर नाम से झूठे पंथ प्रकट करो ।

संसार के लालची और मूर्ख जीव काम, मोह, विषय वासना आदि विषयों के रस में मग्न हैं अतः मैं जो कहता हूँ, उसी अनुसार उन पर घात लगाकर हमला करो ।

संसार में तुम अपने चार पंथस्थापित करो, और उनको अपनी-अपनी (झूठी) राह बताओ । चारो के नाम कबीर नाम पर ही रखो, और बिना कबीर शब्द लगाये मुँह से कोई बात ही न बोलो, अर्थात इस तरह कहो, कबीर ने ऐसा कहा, कबीर ने वैसा कहा । जैसे तुम कबीर की ही वाणी का उपदेश कर रहे होओ ।

कबीर नाम के वशीभूत होकर जब जीव तुम्हारे पास आये, तो उससे ऐसे मीठे वचन कहो । जो उसके मन को अच्छे लगते हों (अर्थात चोट मारने वाले वाले सत्यज्ञान की बजाय उसको अच्छी लगने वाली मीठी मीठी बातें करो । क्योंकि तुम्हें जीव को झूठ में उलझाना है)

कलियुग के लालची, मूर्ख, अज्ञानी जीवों को ज्ञान की समझ नहीं है वे देखादेखी की रास्ता चलते हैं । तुम्हारे वचन सुनकर वे प्रसन्न होंगे, और बारबार तुम्हारे पास आयेंगे । जब उनकी श्रद्धा पक्की हो जाय, और वे कोई भेदभाव न मानें, यानी सत्य के रास्ते और तुम्हारे झूठ के रास्ते को एक ही समझने लगें, तब तुम उन पर अपना जाल डाल दो । पर बेहद होशियारी से, कोई इस रहस्य को जानने न पाये ।

तुम जम्बूदीप (भारत) में अपना स्थान बनाओ, जहाँ पर कबीर के नाम और ज्ञान का प्रमाण है । जब कबीर बाँधोंगढ (छत्तीसगढ़) में जायें, और धर्मदास को उपदेश दीक्षा आदि दें, तब वे उसके बयालीस वंश के ज्ञान राज्य को स्थापित करेंगे । तब तुम्हें उसमें घुसपैठ करके उनके राज्य को डांवाडोल करना है ।

वैसे मैंने चौदह यमों की नाकाबन्दी करके जीव के सत्यलोक जाने का मार्ग रोक दिया है, और कबीर के नाम पर बारह झूठे पंथ चलाकर जीव को धोखे में डाल दिया है । भाई, तब भी मुझको संशय है, उसी से मैं तुमको वहाँ भेजता हूँ । उनके बयालीस वंशों पर तुम हमला करो, और उन्हें अपनी बातों में फ़ँसा लो ।

काल-निरंजन की बात सुनकर वे चारों दूत बोले - हम ऐसा ही करेंगे ।

यह सुनकर काल-निरंजन बहुत प्रसन्न हुआ, और जीवों को छल कपट द्वारा धोखे में रखने के बहुत से उपाय बताने लगा । जीवों पर हमला करने के उसने बहुत से मन्त्र सुनाये ।

फ़िर उसने कहा अब तुम संसार में जाओ, और चारों तरफ़ फ़ैल जाओ । ऊँच, नीच, गरीब, अमीर किसी को मत छोङो, और सब पर काल का फ़ँदा कस दो । तुम ऐसी कपट चालाकी करो कि जिससे मेरा आहार जीव कहीं निकल कर न जाने पाये ।

धर्मदास, यही चारो दूत संसार में प्रगट होंगेजो चार अलग-अलग नामों से कबीर के नाम पर पंथ चलायेंगे । इन चार दूतों को मेरे चलाये बारह पंथों का मुखिया मानो ।
इनसे जो चार पंथ चलेंगे, उससे सब ज्ञान उलट पुलट हो जायेगा ।

ये चार पंथ, बारह पंथों का मूल यानी आधार होंगे । जो वचन वंश के लिये शूल के समान पीङादायक होंगे, यानी हर तरह से उनके कार्य में विघ्न करते हुये जीवों के उद्धार में बाधा पहुँचायेंगे ।

यह सुनकर धर्मदास घबरा गये, और बोले - साहिब, अब मेरा संशय और भी बढ़ गया है, मुझे उन कालदूतों के बारे में अवश्य बताओ । आप उनका चरित्र मुझे सुनाओ ।
उन काल दूतों का वेश और उनका लक्षण कहो । ये संसार में कौन सा रूप बनायेंगे, और किस प्रकार जीवों को मारेंगे । वे कौन से देश में प्रकट होंगे, आप मुझे शीघ्र बताओ ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।