शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

बाप पूत कै एकै नारी


शब्द 9
संतो बोले ते जग मारै ।
अनबोलते कैसे बनिहै, सब्दहि कोइ न बिचारै ।
पहिले जन्म पुत्र को भयऊ, बाप जन्मिया पाछे ।
बाप पूत कै एकै नारी, ई अचरज को काछे ।
दुंदा राजा टीका बैठे, बिषहर करे षबासी ।
स्वान बापुरा धरनि ढाकनों, बिल्ली घर में दासी ।
कार दुकार कार कटि आगे, बैल करै पटवारी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, भैंसे न्याव निबारी ।

शब्द 10
संतो राह दुनो इम दीठा ।
हिन्दू तुर्क हटा नहिं मानै, स्वाद सबन को मीठा ।
हिन्दू बरत एकादसी साधै, दूध सिंघारा सेती ।
अन्न को त्यागै मन नहिं हटकै, पारन करै सगौती ।
तुरुक रोजा निमाज गुजारै, बिसमिल बांग पुकारै ।
इन्हको भिस्त कहां ते होवे, जो सांझै मुगरी मारै ।
हिन्दु की दया मेहर तुर्कन की, दूनो घट से त्यागी ।
ये हलाल वै झटका मारैं, आगि दुनो घर लागी ।
हिन्दु तुर्क की एक राह है, सतगुरु सोइ लषाई ।
कहै कबीर सुनहु हो संतो, राम न कहूँ षोदाई ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।