शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

गर्भ रहा बिनु पानी


शब्द 1

संतो भक्ति सतगुर आनी ।
नारी एक पुरुष दुइ जाये । बूझो पंडित ग्यानी ।
पाहन फोरि गंग एक निकरी । चहुँ दिसि पानी पानी ।
तेहि पानी दुइ पर्वत बूडे । दरिया लहर समानी ।
उडि माषी तरवर को लागी । बोलै एकै बानी ।
वहि माषी को माषा नाहीं । गर्भ रहा बिनु पानी ।
नारी सकल पुरुष वे षायो । ताते रहेउँ अकेला ।
कहंहि कबीर जो अबकी बूझै । सोई गुरु हम चेला ।

शब्द 2
संतो जागत नींद न कीजै ।
काल न षाय कल्प नहिं ब्यापै, देह जरा नहिं छीजै ।
उलटी गंग समुद्रहि सोषै, ससि औ सूरंहि ग्रासै ।
नव ग्रह मारि रोगिया बैठे, जल मां बिम्ब प्रकासै ।
बिनु चरनन को दुहुँ दिसि धावै, बिनु लोचन जग सूझै ।
संसव उलटि सिंह को ग्रासै, ई अचरज को बूझै ।
औंधे घडा नहीं जल बूडे, सीधे सो जल भरिया ।
जेहि कारन नर भिन्न भिन्न, करे गुरु प्रसाद ते तरिया ।
बैठि गुफा में सब जग देषा, बाहर कछू न सूझे ।
उलटा बान पारधी लागे, सूरा होय सो बूझे ।
गायन कह कबहूँ नहिं गावै, अनबोला नित गावै ।
नटवर बाजा पेषनी पेषै, अनहद हेत बढावै ।
कथनी बुंदनी निज कै जोहैं, ई सब अकथ कहानी ।
धरती उलटि अकासहि बेधो, ई पुरुष की बानी ।
बिना पियाला अमृत अँचवै, नदी नीर भरि राषे ।
कहैं कबीर सो जुग जुग जीवै, जो राम सुधारस चाषै ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।