शब्द 45
कौन मुवा कहु पंडित जना, सो समुझाय कहहु मोहि सना ।
मुये ब्रह्मा विसणु महेसू, पार्वती सुत मुये गनेसू ।
मूये चन्द्र मूये रवि केता, मूये हनुमत जिन बांधल सेता ।
मुये कृष्ण मूये कर्तरा, एक न मुवा जो सिरजनहारा ।
कहैं कबीर मुवा नहिं सोई, जाको आवागमन न होई?
शब्द 46
पंडित एक अचरज बड होई ।
एक मरि मुये अन्न नहिं षाई एक मरि सीझै रसोई ।
करि असनान देवन की पूजा नव गुन कांध जनेऊ ।
हँडिया हाड हाड थारी मुष औ षट कर्म बनेऊ ।
धर्म करै तह जीव बधत है अकरम करे मोरे भाई ।
जो तोहरा को ब्राह्मन कहिये तो काको कहिये कसाई ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो भर्म भूलि दुनियाई ।
अपरमपार पार पुरुषोतम या गति बिरलै पाई ।
शब्द 47
पांडे बूझि पियहु तुम पानी ।
जेहि मटिया के घर मैं बैठे, तामें सृस्टि समानी?
छप्पन कोटि जदौ जहँ भीजै, मुनि जन सहस अठासी ।
पैग पैग पैगम्बर गाडै, सो सब सरि भो माटी ।
मच्छ कच्छ घरियार बियाने, रुधिर नीर जल भरिया ।
नदिया नीर नरक बहि आवै, पसु मानुष सब सरिया ।
हाड झरी झरि गूद गलीगल, दूध कहाँ ते आया?
सो ले पांडे जेवन बैठे, मटियहि छूति लगाया?
बेद किताब छाड देव पांडे, ई सब मन के भर्मा ।
कहैं कबीर सुनो हो पांडे, ई सब तुम्हरे कर्मा ।
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