रमैनी 36
ग्यानी चतुर बिचछन लोई, एक सयान सयान न होई ।
दुसर सयान को मर्म न जाना, उतपति परलय रैन बिहाना ।
बानिज एक सभन्हि मिलि ठाना, नेम धर्म संजम भगवाना ।
हरि अस ठाकुर तजियन नहिं जाई, बालन भिस्ति गांव दुलहाई
।
ते नर मरि के कहँ गये, जिन दीन्हो गुर घोंटि ।
राम नाम निज जानि के, छाडहु बस्तू खोटि ।
रमैनी 37
एक सयान सयान न होई, दुसर सयान न जानै कोई ।
तीसर सयान सयानहि खाई, चौथ सयान तहाँ लै जाई ।
पचयं सयान न जानै कोई, छठयें में सब गये बिगोई ।
सतयं सयान जो जानै भाई, लोक वेद में देय देखाई ।
बीजक बतावै बित्त को, जो बित गुप्ता होय ।
वैसे शब्द बतावे जीव को, बूझै विरला कोय ।
रमैनी 38
यहि बिधि कहौ कहा नहिं माना, मारग माहिं पसारिन ताना ।
रात दिवस मिलि जोरिन तागा, ओटत कातत भर्म न भागा ।
भर्महि सब जग रहा समाई, भर्म छोड कतहूँ नहिं जाई
।
परै ना पूरी दिनहुं दिन छीना, जहाँ जाय तहँ अंग विहीना
।
जो मत आदि अंत चलि आयी, सो मत सबहिन प्रकट सुनायी
।
यह संदेस फुर मानि के, लीन्हेउ सीस चढाय ।
संतो है संतोष सुख, रहहु सो हृदय जुडाय ।
रमैनी 39
जिन्ह कलमाँ कलि माहिं पढाया, कुदरत खोजि तिनहु नहिं पाया
।
करमत कर्म करै करतूती, बेद किताब भया अस रीती ।
करमत सो जग भो औतरिया, करमत सो निजाम को धरिया ।
करमत सुन्नति और जनेऊ, हिन्दू तुर्क न जानै भेऊ
।
पानी पवन संजोय के, रचिया यह उत्पात?
सून्यहि सुरति समाय के, कासो कहिये जात ।
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