शनिवार, अप्रैल 17, 2010

जाकर नाम अकहुबा रे भाई


                          रमैनी 51

जाकर नाम अकहुबा रे भाई, ताकर काह रमैनी गाई ।
कहत तात्पर्य एक ऐसा, जस पंथी बोहित चढि वैसा ।
है कछु रहनि गहनि की बाता, बैठा रहै चला पुनि जाता ।
रहै वदन नहि स्वांग सुभाऊ, मन स्थिर नहिं बोलै काऊ ।

तन राता मन जात है, मन राता तन जाय ।
तन मन एकै होए रहै, तब हंस कबीर कहाय ।

                                रमैनी 52

जेहि कारन सिव अजहुँ बियोगी, अंग बिभूत लाय भै योगी ।
सेस सहस मुख पार न पावै, सो अब खसम सहित समुझावै ।
ऐसी विधि जो मोकँह ध्यावै, छठये माह सो दर्सन पावै?
कौनेहु भाँति दिखाई देहों, गुप्तहिं रहो सुभाव सब लेहों ।

कहँहिं कबीर पुकारि के, सबका उहै विचार ।
कहा हमार मानै नहीं, किमि छूटै भ्रम जार ।

                            रमैनी 53

महादेव मुनि अंत न पाया, उमा सहित उन जन्म गवाँया ।
उनहूं ते सिध साधक होई, मन निश्चय कहु कैसे कोई ।
जब लगि तन में आहै सोई, तब लगि चेत न देखै कोई?
तब चेतिहौ जब तजिहौ प्राना, भया अन्त तब मन पछिताना?
इतना सुनति निकट चलि आई, मन के बिकार न छूटा भाई ।

तीन लोक मुवाबउ आय के, छूटी न काहु कि आस ।
एक अँधरे जग खाइया, सब का भया निपात ।

                            रमैनी 54

मरिगे ब्रह्मा काशी के बासी, शिव सहित मुये अबिनासी ।
मथुरा मरिगे कृष्ण गुवारा, मरि मरि गये दसौ अवतारा ।
मरि मरि गये भक्ति जिन ठानी, सगुन माहि निर्गुन जिन्ह आनी ।

नाथ मुछंदर बांचे नहीं, गोरख दत्ता व्यास ।
कहँहिं कबीर पुकारि के, सब परे काल के फांस ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।