शब्द 72
चलहु क्या टेढो टेढो टेढो ।
दसहूँ द्वार नरक भरि बूडे, तू गंधी को बेडो ।
फूटे नैन हृदय नहिं सूझै, मति एकौ नहिं जानी ।
काम क्रोध तृसना के माते, बूडि मुये बिनु पानी ।
जो जारे तन होय भस्म, धुरि गाडे कीटहि षाई ।
सूकर स्वान काग का भोजन, तन का इहै बडाई ।
चेति न देष मुग्ध नर बौरे, तोहते काल न दूरी ।
कोटिक जतन करो यह तन की, अंत अवस्था धूरी ।
बालू के घरवा मैं बैठे, चेतत नाहिं अयाना ।
कहैं कबीर एक राम भजे बिनु, बूडे बहुत सयाना ।
शब्द 73
फिरहु क्या फूले फूले फूले ।
जब दस मास उर्ध मुष होते, सो दिन काहे को भूले ।
जो मांषी सहते नहिं बीहुर, सोचि सोचि धन कीन्हा ।
मूये पीछे लेहु लेहु करि, भूत रहन नहिं दीन्हा ।
देहरि ले बर नारि संग है, आगे संग सुहेला ।
मृतक थान ले संग षटोला, फिर पुनि हंस अकेला ।
जारे देह भस्म हो जाई, गाडे माटी षाई ।
कांचे कुंभ उदक जो भरिया, तन की इहै बडाई ।
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल बस कूंवा ।
कहैं कबीर नर आपु बँधायो, ज्यों नलनी भ्रम सूवा ।
शब्द 74
ऐसो जोगिया है बदकमरी, जाके गगन अकास न धरनी ।
हाथ न वाके पांव न वाके, रूप न वाके न वाके रेषा ।
बिना हाट हटवाई लावै, करै बयाई लेषा ।
कर्म न वाके धर्म न वाके, जोग न वाके जुक्ती ।
सींगी पात्र कछू नहिं वाके, काहे को मांगे भुक्ती ।
मैं तोहि जाना तैं मोहि जाना, मैं तोहि माह समाना ।
उत्पति परलय एकहु न होते, तब कहु कौन को ध्याना ।
जोगिया ने एक ठाढ किया है, राम रहा भरपूरी ।
औषध मूल कछू नहिं वाके, राम सजीवन मूरी ।
नटवर बाजी पेषनी पेषै, बाजीगर की बाजी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, भई सो राज बिराजी ।
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