शनिवार, मई 01, 2010

चलहु क्या टेढो टेढो टेढो


शब्द 72

चलहु क्या टेढो टेढो टेढो ।
दसहूँ द्वार नरक भरि बूडे, तू गंधी को बेडो ।
फूटे नैन हृदय नहिं सूझै, मति एकौ नहिं जानी ।
काम क्रोध तृसना के माते, बूडि मुये बिनु पानी ।
जो जारे तन होय भस्म, धुरि गाडे कीटहि षाई ।
सूकर स्वान काग का भोजन, तन का इहै बडाई ।
चेति न देष मुग्ध नर बौरे, तोहते काल न दूरी ।
कोटिक जतन करो यह तन की, अंत अवस्था धूरी ।
बालू के घरवा मैं बैठे, चेतत नाहिं अयाना ।
कहैं कबीर एक राम भजे बिनु, बूडे बहुत सयाना ।

शब्द 73

फिरहु क्या फूले फूले फूले ।
जब दस मास उर्ध मुष होते, सो दिन काहे को भूले ।
जो मांषी सहते नहिं बीहुर, सोचि सोचि धन कीन्हा ।
मूये पीछे लेहु लेहु करि, भूत रहन नहिं दीन्हा ।
देहरि ले बर नारि संग है, आगे संग सुहेला ।
मृतक थान ले संग षटोला, फिर पुनि हंस अकेला ।
जारे देह भस्म हो जाई, गाडे माटी षाई ।
कांचे कुंभ उदक जो भरिया, तन की इहै बडाई ।
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल बस कूंवा ।
कहैं कबीर नर आपु बँधायो, ज्यों नलनी भ्रम सूवा ।

शब्द 74

ऐसो जोगिया है बदकमरी, जाके गगन अकास न धरनी ।
हाथ न वाके पांव न वाके, रूप न वाके न वाके रेषा ।
बिना हाट हटवाई लावै, करै बयाई लेषा ।
कर्म न वाके धर्म न वाके, जोग न वाके जुक्ती ।
सींगी पात्र कछू नहिं वाके, काहे को मांगे भुक्ती ।
मैं तोहि जाना तैं मोहि जाना, मैं तोहि माह समाना ।
उत्पति परलय एकहु न होते, तब कहु कौन को ध्याना ।
जोगिया ने एक ठाढ किया है, राम रहा भरपूरी ।
औषध मूल कछू नहिं वाके, राम सजीवन मूरी ।
नटवर बाजी पेषनी पेषै, बाजीगर की बाजी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, भई सो राज बिराजी ।

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।