शब्द 69
जंत्री जंत्र अनूपम बाजै । वाके अस्ट गगन मुष गाजै ।
तूही बाजै तूही गाजै । तुही लिये कर डोलै ।
एक सब्द में राग छतीसौ । अनहद बानी बोलै ।
मुष के नाल स्रवन के तुंबा । सतगुरु साज बनाया ।
जिभ्या तार नासिका चरई । माया मोम लगाया ।
गगन मँदिल में भयो उजियारा । उलटा फेर लगाया ।
कहैं कबिर जन भये बिबेकी । जिन्ह जंत्री मन लाया ।
शब्द 70
जस मांसु पसु की तस मांसु नर की । रुधिर रुधिर एक सबपरा जी ।
पसु के मांसु भच्छे सब कोई । नरहि न भच्छे सियारा जी ।
ब्रह्म कुलाल मेदिनी भइया । उपजि विनसि कित गइया जी ।
मासु मछरिया तैं पै षइया । जो षेतन में बोइया जी ।
माटी के करि देवी देवा । काटि काटि जिव देइया जी ।
जो तोहरी है सांचा देवी । षेत चरत क्यों न लेइया जी ।
कहैं कबीर सुनो हो संतो । राम नाम नित लेइया जी ।
जो कछु कियेउ जिभ्या के स्वारथ । बदल पराया देइया जी ।
शब्द 71
चातृक कहाँ पुकारै दूरी । सो जल जगत रहा भरपूरी ।
जेहि जल नाद बिंदु को भेदा । षट कर्म सहित उपानेउ बेदा ।
जेहि जल जीव सीव को बासा । सो जल धरनी अमर परगासा ।
जेहि जल उपजल सकल सरीरा । सो जल भेदन जानु कबीरा ।
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