शनिवार, मई 01, 2010

पहला दूसरा हिंडोला


अथ हिंडोला

भर्म हिंडोलना झूलै सब जग आय ।
जहँ पाप पुण्य के खंभ दोऊ मेरु माया नाय ॥
तहँ कर्म पटुली बैठि कै को को न झूलै आय ।
यह लोभ मरुवा विषय भमरा काम कीला ठानि ॥
दोऊ शुभौ अशुभ बनाय डांङी गह्यो दूनौ पानि ।
झूले सो गण गंधर्व मुनि नर झुले सुर गण इन्द्र ॥
झूलत सु नारद शारदा हो झुलत व्यास फ़णिन्द्र ।
झूलत विरंचि महेश मुनि हो झुलत सुरज इन्दु ॥
औ आप निरगुण सगुण ह्वै कै झूलिया गोविंदु ।
छः चारि चौदह सात यकइस तीन लोक बनाय ॥
चौ खानि बानी खोजि देखौ थिर न कोइ रहाय ।
शशि सूर निशिदिन संधि औ तहँ तत्व पांचौ नाहिं ॥
कालहु अकालहु प्रलय नहिं तहँ संत बिरले जाहिं ।
खण्डहु ब्रह्माण्डहु खोज षट दरशन ये छूटे नाहिं ॥
यह साधु संग विचारि देखौ जीउ निसतरि जाहि ।
तहँ के बिछुरि बहु कल्प बीते परे भूमि भुलाय ॥
अब साधु संगति शोचि देखौ बहुरि उलट समाय ।
तेहि झूलिबे की भय नाहिं जो सन्त होहिं सुजान ।
कह कबीर सत सुकृत मिलै तौ फ़िरि न झूलै आन ॥

अथ दूसरा हिंडोला

बहुविधि के चित्र बनाइ कै हरि रच्यो क्रीडा रास ।
ज्यहि नाहिं इच्छा झूलबे अस बुद्धि केहि के पास ॥
झूलत झूलत बहु कल्प बीते मन न छोङै आस ।
यह रच्यो रहस हिंडोलना निशि चार युग चौ मास ॥
कबहूंक ऊंच नीचे कबहूं स्वर्ग भूलौ जाय ।
अति भ्रमत भ्रमहिं हिंडोलना सो नेकु नहिं ठहराय ॥
डरपत रहौ यहि झूलिबे कौ राखु यादवराय ।
कह कबिर सुनु गोपाल विनती शरण हौं तुव पाय ॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।