शनिवार, मई 01, 2010

आपन कर्म न मेटो जाई


शब्द 108

अब हम भयल बहुरि जल मीना पूर्व जन्म तप का मद कबपना ।
तब मैं अछलों मन बैरागी तजलों कुटुंब राम रट लागी ।
तजलों कासी मति भै भोरी प्रान नाथ कहु क्या गति मोरी ।
हमहि कुसेवक तुमहि अयाना दुइमा दोष काहि भगवाना ।
हम चलि अइल तुम्हारे सरना कतहुं न देषों हरि के चरना ।
हम चलि अइल तुम्हारे पासा दास कबीर भल कीन्ह निरासा ।

शब्द 109

लोग बोलै दुरि गये कबीरा यह मत कोइ कोइ जानै धीरा ।
दसरथ सुत तिहुँ लोकहि जाना राम राम का मर्महि आना ।
जेहि जिय जानि परा जस लेषा रज को कहे उरग सम पेषा ।
जद्रयपि फल उत्तम गुन जाना हरि छोड मन मुक्ति अनुमाना ।
हरि अधार जस मीनहि नीरा और जतन कछु कहे कबीरा ।

शब्द 110

आपन कर्म न मेटो जाई ।
कर्म का लिषा मिटै धौ कैसे, जुग कोटि सिराई ।
गुरु वसिष्ट मिलि लगन सोधाई, सूर्य मंत्र एक दीन्हा ।
जो सीता रघुनाथ विवाही, पल एक संच न कीन्हा ।
तीन लोक के कर्त कहिये, बालि बधे बरियाई ।
एक समय ऐसी बनि आई, जनहूँ औसर पाई ।
नारद मुनि को बदन छिपायो, कीन्हो कपि को रूपा ।
सिसुपाल की भुजा उपारिन, आप भये हरि ठूंठा ।
पारबती को बांझ न कहिये, ईसन कहिये भिषारी ।
कहैं कबीर कर्ता की बातैं, कर्म की बात निनारी ।


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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।