शनिवार, मई 01, 2010

सातवां आठवां कहरा


अथ सातवां कहरा

रहहु संभारे राम विचारे, कहत अहौ जो पुकारे हो ।
मूढ़ मुढ़ाय फ़ूलि कै बैठे, मुद्रा पहिरि मंजूसा हो ॥
ताहि ऊपर कछु छारि लपेटे, भितर भितर घर मूसा हो ।
गाउँ बसत है गर्व भारती, माम काम हंकारा हो ।
मोहिनि जहाँ तहाँ लै जैहै, नहिं पति रहै तुम्हारा हो ॥
मांझ मंझरिया बसै जो जानै, जन ह्वै है सो थीरा हो ।
निर्भय गुरू की नगरिया, तहवां सुख सोवै दास कबीरा हो ॥

अथ आठवां कहरा

क्षेम कुशल औ सही सलामत, कहहु कौन को दीन्हा हो ।
आवत जात दुनौ विधि लूटे, सरब संग हरि लीन्हा हो ॥
सुर नर मुनि जेते पीर औलिया, मीरा पैदा कीन्हा हो ।
कहँ लौ गिनैं अनन्त कोटि लै, सकल पयाना दीन्हा हो ॥
पानी पवन अकाश जाहिगो, चन्द्र जाहिगो सूरा हो ।
वह भी जाहिगो यह भी जाहिगो, परत काहु को न पूरा हो ॥
कुशलै कहत कहत जग बिनशै, कुशल काल की फ़ांसी हो ।
कह कबीर सब दुनियां विनशल, रहल राम अविनाशी हो ॥


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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।