अथ सातवां कहरा
रहहु संभारे राम विचारे, कहत अहौ जो पुकारे हो ।
मूढ़ मुढ़ाय फ़ूलि कै बैठे, मुद्रा पहिरि मंजूसा हो
॥
ताहि ऊपर कछु छारि लपेटे, भितर भितर घर मूसा हो ।
गाउँ बसत है गर्व भारती, माम काम हंकारा हो ।
मोहिनि जहाँ तहाँ लै जैहै, नहिं पति रहै तुम्हारा
हो ॥
मांझ मंझरिया बसै जो जानै, जन ह्वै है सो थीरा हो ।
निर्भय गुरू की नगरिया, तहवां सुख सोवै दास
कबीरा हो ॥
अथ आठवां कहरा
क्षेम कुशल औ सही सलामत, कहहु कौन को दीन्हा हो ।
आवत जात दुनौ विधि लूटे, सरब संग हरि लीन्हा हो ॥
सुर नर मुनि जेते पीर औलिया, मीरा पैदा कीन्हा हो ।
कहँ लौ गिनैं अनन्त कोटि लै, सकल पयाना दीन्हा हो ॥
पानी पवन अकाश जाहिगो, चन्द्र जाहिगो सूरा हो ।
वह भी जाहिगो यह भी जाहिगो, परत काहु को न पूरा हो ॥
कुशलै कहत कहत जग बिनशै, कुशल काल की फ़ांसी हो ।
कह कबीर सब दुनियां विनशल, रहल राम अविनाशी हो ॥
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