शब्द 111
है कोई गुरु ग्यानि जगत में उलटि बेद की बूझै ।
पानी में पावक बरै अंधहि आंषिन सूझै ।
गैया तो नाहर को षायो हरिना षायो चीता ।
कागा लंगर फांदि के बटेरन बाजी जीता ।
मूसा तो मंजारै षायो स्यारै षायो स्वाना ।
आदि को उदेस जानै तासो वैसे माना ।
एकहि तो दादुर षायो पाँच जे भुवंगा ।
कहैं कबीर पुकारि के दोउ एक के संगा ।
शब्द 112
झगरा एक बढो राजा राम, जो निरुवारैं सो निर्धान ।
ब्रह्म बडो की जहँ से आया, बेद बडा कि जिन उपजाया ।
ई मन बडो कि जेहि मनमाना, राम बडो कि रामहि जाना ।
भ्रमि भ्रमि कबिरा फिरत उदास, तीर्थ बडा कि तीर्थ का दास ।
शब्द 113
झूठे जनि पतियाहु हो सुन संत सुजाना ।
तेरे घटही में ठग पूरेहैं मति षोवहु अपाना ।
झूठहि की मंडान है धरती असमाना ।
दसहुँ दिसा वाके फंद हैं जीव घेरिन आना ।
जोग जप तप संयमा तीर्थ ब्रत दाना ।
नौधा बेद किताब है झूठे का बाना ।
काहू के बचनहि फुरे काहू के करमाती ।
मान बडाई ले रहे हिंदू तुरुक दोउ जाती ।
बात बोबत असमाना की मुद्रदति नियरानी ।
बहुत षुदी दिल राषते बूडे बिनु पानी ।
कहैं कबीर कासो कहौं सकलो जग अन्धा ।
साचा से भागा फिरै झूठे का बन्धा ।
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