शनिवार, मई 01, 2010

आठवां नवां दशवां बसन्त


अथ आठवां बसन्त

कर पल्लव के बल खेलै नारि, पण्डित जो होय सो लेय विचार ।
कपरा नहि पहिरै रह उघारि, निरजीवै सो धन अति पियारि ॥
उलटी पलटी बाजै सो तार, काहुहि मारै काहुहि उबार ।
कह कबीर दासन के दास, काहुहि सुख दे काहुहि उदास ॥

अथ नवां बसन्त

ऐसो दुर्लभ जात शरीर, राम नाम भजु लागै तीर ।
गये वेणु बलि गेहै कंस, दुर्योधन गये बूढ़े वंश ॥
पृत्थु गयै प्रथ्वी के राव, विक्रम गये रहे नहिं काव ।
छौ चकवे मंडली के झार, अजहूं हो नर देखु विचार ॥
हनुमत कश्यप जन कौ वार, ई सब रोंके यम के धार ।
गोपिचन्द भल कीन्हो योग, रावण मरिगो करतै भोग ॥
जातु देख अस सबके जाम, कह कबीर भजु राम नाम ।

अथ दशवां बसन्त

सब ही मदमाते कोई न जाग, सो संगहि चोर घर मुसन लाग ।
योगी मदमाते योग ध्यान, पंडित मदमाते पढ़ि पुरान ॥
तपसी मदमाते तप के भेव, संन्यासी माते करहि मेव ।
मोलना मदमाते पढ़ि मुसाफ़, काजी मदमाते कै निसाफ़ ॥
शुकदेव मते ऊधो अकूर, हनुमत मदमाते लिये लंगूर ।
संसार मत्यो माया के धार, राजा मदमाते करि हंकार ॥
शिव माति रहे हरि चरण सेव, कलि माते नामदेव जयदेव ।
वह सत्य सत्य कहि सुमृति वेद, जस रावण मारे घर के भेद ॥
यह चंचल मन के अधम काम, सो कह कबीर भजु राम नाम ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।